उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआईओएस) शिव नारायण सिंह पर भ्रष्टाचार, अनियमितता और पद के दुरुपयोग के आरोपों ने शासनिक स्तर पर हलचल मचा दी है। तीन महीने के भीतर शासन ने छह अलग-अलग जांच समितियां गठित कीं, मगर इनमें से कोई भी समिति अपनी रिपोर्ट नहीं दे सकी। जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री कार्यालय से लेकर माध्यमिक शिक्षा निदेशालय तक इस मामले में गंभीर निर्देश जारी हुए, परंतु कार्रवाई ठप पड़ी रही। इस प्रकरण की शुरुआत तब हुई जब गोरखपुर निवासी भाजपा नेता जय कुमार सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शिकायत करते हुए डीआईओएस पर भ्रष्टाचार और नियमों के उल्लंघन के गंभीर आरोप लगाए। मुख्यमंत्री कार्यालय ने 25 मई 2025 को पहली बार जांच के आदेश जारी किए, जिसके बाद प्रमुख सचिव संजय प्रसाद ने भी जांच दोहराने के निर्देश दिए। इसके बावजूद, देवरिया के डीआईओएस पर कार्रवाई आगे नहीं बढ़ सकी। जांच के नाम पर समितियां बनीं और बदलती रहीं, लेकिन रिपोर्ट एक भी समिति नहीं दे पाई। बताया जा रहा है कि शासन से लेकर निदेशालय तक डीआईओएस की सिफारिश और साठगांठ इतनी मजबूत है कि अधिकारी भी कार्रवाई से बचते रहे। 29 अगस्त 2025 को तो एक ही दिन में दो अलग-अलग समितियां गठित की गईं, लेकिन उनकी जांच भी ठंडी पड़ गई।
बार-बार बनी समितियां, लेकिन कार्रवाई नहीं
माध्यमिक शिक्षा विभाग की ओर से बनी छह समितियों में से पहली समिति 23 जून 2025 को गठित हुई थी, जिसमें गोरखपुर के मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशक और अन्य वरिष्ठ अधिकारी सदस्य थे। इसके बाद 16 जुलाई, 18 जुलाई, 12 अगस्त और 29 अगस्त को पांच और समितियां बनीं। आखिरी दो समितियों में अपर निदेशक राम शरण सिंह को अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन उनके बेसिक शिक्षा विभाग में तबादले के बाद यह जांच भी अधर में लटक गई। विभागीय सूत्रों के अनुसार, डीआईओएस के खिलाफ शिकायतें गंभीर हैं-जिनमें शिक्षण संस्थानों में नियुक्तियों में गड़बड़ी, वेतन भुगतान में अनियमितता, प्रबंध समितियों में पक्षपात और कार्यालय में नियमविरुद्ध संसाधनों का प्रयोग जैसे आरोप शामिल हैं। मोहम्मद हुसैन इंटर कॉलेज नवलपुर में खाते के दुरुपयोग, दुग्धेश्वर नाथ इंटर कॉलेज में वेतन भुगतान में गड़बड़ी, बखरा इंटर कॉलेज में प्रबंध विवाद को बढ़ावा देने जैसे मामलों ने डीआईओएस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं। इसके अलावा, डीआईओएस कार्यालय में बिना अनुमति के वॉयस रिकॉर्डर युक्त सीसीटीवी कैमरे और नौ एयर कंडीशनर लगवाने का भी आरोप है। कर्मचारियों का कहना है कि अधिकारी नियमित रूप से पत्रावली पर हस्ताक्षर नहीं करते, जिससे प्रशासनिक कार्य ठप रहते हैं। सूत्रों के मुताबिक, हर जांच समिति बनने के कुछ दिन बाद ही बदल दी जाती है, जिससे जांच आगे नहीं बढ़ पाती और पूरा मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है।
विभागीय साठगांठ और राजनीतिक प्रभाव से जांच ठप
इस पूरे मामले में शासन और विभागीय अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। पहले के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार के कार्यकाल में जांच समितियां सक्रिय थीं, लेकिन उनके स्थानांतरण के बाद नए प्रमुख सचिव पार्थसारथी सेन शर्मा के कार्यभार संभालने के बावजूद मामला उन तक नहीं पहुंचाया गया। बताया जा रहा है कि विभाग के भीतर कुछ अधिकारी डीआईओएस के संपर्क में हैं, जो लगातार जांच को टालने में मदद कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि शिव नारायण सिंह की पकड़ न सिर्फ निदेशालय तक है, बल्कि शिक्षा विभाग के अनुभाग अधिकारियों से लेकर क्षेत्रीय दफ्तरों तक उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है। यही कारण है कि कोई भी समिति उनकी जांच को आगे नहीं बढ़ा पा रही है। शासन स्तर पर भी अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या भ्रष्टाचार की जांच केवल औपचारिकता बनकर रह गई है। स्थानीय सूत्र बताते हैं कि शिव नारायण सिंह जुलाई 2024 से देवरिया में प्रभारी डीआईओएस के रूप में कार्यरत थे और दिसंबर 2024 में उन्हें स्थायी पद पर नियुक्त किया गया। इससे पहले वह प्रयागराज के डायट में वरिष्ठ प्रवक्ता के पद पर तैनात थे। उनके खिलाफ लगातार उठते सवालों और जांचों के बावजूद, अब तक कोई ठोस कार्रवाई न होना विभाग की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है। जानकारों का मानना है कि यह मामला केवल एक अफसर के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की कार्यप्रणाली पर गहरा प्रश्न चिन्ह लगाता है। अगर जांचें इसी तरह टलती रहीं, तो भ्रष्टाचार के मामलों में जवाबदेही की उम्मीद करना बेमानी साबित होगा।




