आगरा की अवधपुरी कॉलोनी में हाल के दिनों में जो माहौल बन गया है, वह सिर्फ एक खेल जीत का उत्सव नहीं बल्कि पूरे इलाके की पहचान बदल देने वाला जश्न है। दीप्ति शर्मा के परिवार के पास यह गर्व और प्रसन्नता साफ़ झलकती है-रिश्तेदारों, पड़ोसियों और विभिन्न वीआईपी मेहमानों का सतत आना-जाना इस बात का संकेत है कि किस तरह स्थानीय समुदाय ने इस उपलब्धि को अपने स्तर पर आत्मसात कर लिया है। कॉलोनी जहां कभी सामान्य-सी मानी जाती थी, अब उसकी चर्चा दीप्ति के नाम से हो रही है; गली के डिलो-उबड़-खाबड़ रास्तों का पक्का होना, आसपास की साफ-सफाई और स्वागत की तैयारी यह दर्शाती है कि खिलाड़ी की कामयाबी ने पूरे मोहल्ले को प्रभावित किया है। परिवार के सदस्यों के मुताबिक लोग लगातार बधाई देने आ रहे हैं और हर घर में दीप्ति के खेलने के किस्से, संघर्ष और जीत की बातें हो रही हैं। स्थानीय प्रशासन और समाज के लोग भी इस खुशी में शामिल होकर कॉलोनी को सजाने, स्वागत की व्यवस्थाओं और सुरक्षा का ध्यान रखने में लगे हुए हैं, ताकि खिलाड़ी के घर लौटने पर पूरे मोहल्ले को एकजुट होकर अपनी बेटी का सम्मान करने का अवसर मिल सके।
परिवार के जज्बात, बातें और शादी को लेकर चल रही चर्चाएँ
दीप्ति के घर के सदस्य-माँ सुशीला शर्मा और पिता श्रीभगवान शर्मा-अपनी बेटी की सादगी और घर के कामकाज में मदद करने वाली आदतों का बार-बार जिक्र करते नजर आते हैं। माँ ने विशेष रूप से बताया कि दीप्ति के हाथ का चिवड़ा, पराठे और रोज़मर्रा के व्यंजन घर के लोगों को बेहद प्रिय हैं और उनका कहना है कि ‘‘वो बहुत अच्छा खाना बनाती है, पहले बहू लाऊंगी… फिर बेटी विदा करूंगी’’-यह बात इस घरेलू माहौल और परंपरागत प्राथमिकताओं को दर्शाती है। जीत के बाद रिश्तेदारों और संभावित रिश्तों का सिलसिला शुरू हो गया है और परिवार की प्राथमिकता फिलहाल दीप्ति के बड़े भाई की शादी है-माँ और परिवार की सोच परंपरागत प्राथमिकताओं और परिवारिक जिम्मेदारियों के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। पिता ने दीप्ति को सिखाये हुए नैतिक मूल्यों और विनम्रता पर ज़ोर दिया; उन्होंने बेटी से कहा कि चाहे जितनी भी ऊँचाइयाँ हासिल कर लो, घमंड नहीं करना है। यह संदेश सिर्फ दीप्ति के लिए नहीं बल्कि किसी भी युवा खिलाड़ी के लिए एक महत्वपूर्ण सामाजिक सीख है-लोकप्रियता और सफलता के साथ भी विनम्रता और आत्मसंतुलन बनाए रखना। भाई सुमित शर्मा, जो स्वयं क्रिकेट अकादमी चलाते हैं, ने स्पष्ट किया कि उन्होंने अपने अधूरे सपनों को दीप्ति में साकार होते देखा-एक कोच के रूप में सुमित ने दीप्ति को छोटी उम्र से प्रशिक्षण दिए और उसी लगन का नतीजा आज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिखाई दे रहा है। परिवार की यह साझा यात्रा-सपने, त्याग और पारिवारिक मार्गदर्शन-दीप्ति की सफलता के पीछे की प्रमुख वजहों के रूप में उभरकर आती है।
खेल की उपलब्धियाँ और सार्वजनिक मान्यताएँ: पुरस्कार, सम्मान और भविष्य की योजनाएँ
दीप्ति शर्मा ने इस टूर्नामेंट में अपने प्रदर्शन से नया कीर्तिमान स्थापित किया है; वह इस वर्ल्ड कप में टीम की शीर्ष विकेट लेने वाली गेंदबाज़ बनकर उभरीं और उनके नाम 22 विकेट दर्ज किए गए-यह आंकड़ा शशिकला कुलकर्णी के 1981 के रिकॉर्ड (20 विकेट) को भी पीछे छोड़ता है, जो महिलाओं के क्रिकेट इतिहास में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जाएगी। टीम की जीत के बाद केंद्र सरकार और राज्य सरकार के स्तर पर भी सम्मान और पुरस्कार की घोषणाएँ हुईं-योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश के खिलाड़ी के लिए 1.5 करोड़ रूपए के पुरस्कार का प्रावधान किया है, जो स्पष्ट रूप से खिलाड़ी के घरेलू और वित्तीय भविष्य को सुदृढ़ करेगा। साथ ही, वर्ल्ड कप जीत के केवल कुछ दिनों बाद राष्ट्रीय टीम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने और डिनर में हिस्सा लेने का निमंत्रण मिला, जो खिलाड़ियों के लिए मानवीय और प्रतीकात्मक सम्मान दोनों रूपों में महत्त्व रखता है; दीप्ति और उनकी सहक्रीड़ाओं ने साझा करते हुए कहा कि वे प्रधानमंत्री को टीम की तरफ़ से कोई खास उपहार देने पर विचार कर रही हैं। स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया कवरेज के साथ-साथ, दीप्ति के लौटने पर जो सामाजिक और आर्थिक प्रभाव देखा जा रहा है-जैसे कॉलोनी का नामकरण, मेहमानों का आवागमन और प्रशासनिक सजीवता-यह सब दर्शाता है कि युवा खिलाड़ी की सफलता न केवल व्यक्तिगत उपलब्धि है बल्कि समुदाय, स्थानीय अर्थव्यवस्था और सामाजिक प्रतिष्ठा से भी जुड़ी हुई है। हालांकि, परिवार से जुड़े लोगों की प्राथमिकता अभी पारिवारिक जिम्मेदारियों और साधारण जीवनशैली को बनाए रखना है-वर्षों के संघर्ष और समर्पण के बाद आई सफलता के बीच वे चाहते हैं कि दीप्ति जड़ें न भूलें और विनम्रता के साथ अपने करियर को आगे बढ़ाएं।




