सपा ने बदल दी रणनीति, आकाश आनंद बने निशाने पर
लखनऊ में हाल ही में हुई बसपा की रैली के बाद सपा ने अपनी राजनीतिक रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। अब सपा प्रमुख अखिलेश यादव सीधे बसपा के राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद पर निशाना साध रहे हैं। अखिलेश ने कहा कि आकाश आनंद की सक्रियता बसपा की बजाय भाजपा के लिए ज्यादा फायदेमंद है। यह वही आकाश हैं, जिनके बसपा से निकाले जाने पर अखिलेश ने पहले मायावती पर आरोप लगाए थे। विशेषज्ञ मानते हैं कि सपा की इस चाल के पीछे पीडीए वोटबैंक के दरकने और युवा वोटरों के खिसकने का खतरा है।
पीडीए और दलित वोट बैंक का दबाव
9 अक्टूबर को कांशीराम परिनिर्वाण दिवस पर बसपा की बड़ी रैली ने सियासी माहौल बदल दिया। मायावती ने इस रैली में भतीजे आकाश आनंद को पार्टी के भविष्य के रूप में पेश किया और उनके सक्रिय होने का संकेत दिया। सपा–कांग्रेस गठबंधन के लिए यह चिंता का विषय बन गया क्योंकि पीडीए का नारा 2024 के लोकसभा चुनाव में उनके लिए संजीवनी साबित हुआ था। लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे के अनुसार, नॉन-जाटव दलितों और जाटवों का वोट महत्वपूर्ण है। आकाश की सक्रियता से ये वोट सपा की ओर खिसक सकते हैं, जिससे गठबंधन की रणनीति कमजोर हो सकती है।
युवा वोटरों और आगामी चुनाव में संभावित असर
राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि 18 से 29 वर्ष के युवा वोटर यूपी के चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। आकाश आनंद की उम्र 29 वर्ष है और युवा वर्ग के बीच उनका आकर्षण सपा के लिए खतरा बन सकता है। 9 अक्टूबर के कार्यक्रम में भी बड़ी संख्या में दलित और ओबीसी युवा शामिल हुए थे। सपा ने अब अपने दलित नेताओं को मोर्चे पर लगाकर उत्पीड़न के मुद्दों को उठाने का निर्देश दिया है। राजनीतिक विश्लेषक प्रो. विवेक कुमार के अनुसार, 2024 में भ्रमित होकर सपा के पक्ष में गए दलित वोटर अब बसपा और आकाश की सक्रियता से वापस अपनी पार्टी की ओर लौट सकते हैं। भाजपा भी दोनों पार्टियों पर जातिवादी राजनीति का आरोप लगा रही है। ऐसे में 2027 के विधानसभा चुनाव में पीडीए और युवा वोटर सियासी समीकरण को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।