Hindi News / State / Bihar / योगी आदित्यनाथ का बयान-“NDA बनवाइए, यूपी का बुलडोजर बिहार में भी चलेगा”: दरभंगा-मुजफ्फरपुर में तीखा हमला, विपक्ष पर आक्रामक टिप्पणियाँ

योगी आदित्यनाथ का बयान-“NDA बनवाइए, यूपी का बुलडोजर बिहार में भी चलेगा”: दरभंगा-मुजफ्फरपुर में तीखा हमला, विपक्ष पर आक्रामक टिप्पणियाँ

मुजफ्फरपुर और दरभंगा में रैलियों में बोले सीएम योगी माफिया व अपराधियों पर सख्त रुख और RJD-कांग्रेस-सपा पर तीखी आलोचना, धार्मिक और विकास-संबंधी मुद्दों का जुड़ाव

Uttar Pradesh CM Yogi Adityanath addressing a crowd during Bihar election rally | Bihar News

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान मुजफ्फरपुर और दरभंगा में आयोजित सभाओं में सत्तासंघी गठबंधन के पक्ष में मोर्चा संभाला और अपने भाषण में विपक्ष पर तीखी आलोचना करते हुए कड़े रुख की बात कही। उन्होंने कहा कि यूपी में माफियाओं के विरुद्ध जो कार्रवाई की गई, वह बुलडोजर के माध्यम से की गई कारवाई का प्रतीक है और यदि जनता NDA को सत्ता में लाती है तो वैसा ही कदम बिहार में भी लागू होगा। योगी के तेवरों में न केवल अपराध और माफिया के खिलाफ सख्ती का संदेश था, बल्कि उन्होंने विपक्षी दलों-विशेषकर RJD, कांग्रेस और सपा-पर आरोप लगाते हुए उन्हें विकास के मार्ग में रोड़ा डालने वाला और समाज के विरुद्ध कार्य करने वाला बताया। सभा के दौरान योगी ने सामाजिक व सांस्कृतिक मुद्दों को जोड़ते हुए धार्मिक आस्थाओं पर कथित हमले का भी हवाला दिया और अयोध्या की उपलब्धियों को बिहार से जोड़कर बताने की कोशिश की। उनके भाषण में पिछले वर्षों के प्रशासनिक और कानून-व्यवस्था के अनुभवों का जिक्र था, जिनके सहारे उन्होंने यह तर्क पेश किया कि कठोर और निर्णायक कार्रवाई से ही अपराधी तत्व कम होंगे और विकास के कार्य सुचारू रूप से आगे बढ़ेंगे। इस हिस्से में योगी ने बार-बार यह दोहराया कि जिन लोगों ने पहले विकास के विरोध में सड़कों के निर्माण पर भी आपत्ति जताई, वे आज विकास विरोधी रास्ते अपनाकर जनता को पीछे रखने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने यह दावा भी किया कि यूपी में स्थिति ‘सुधार’ चुकी है और वहां अब दंगे या बड़ी अपराधिक घटनाओं का माहौल नहीं है; इसी मॉडल को बिहार में लागू करने का वादा उन्होंने दोहराया।

मुख्य आरोप-प्रत्यारोप और विपक्ष पर टिप्पणियाँ

योगी आदित्यनाथ ने विपक्ष को न सिर्फ प्रशासनिक विफलता का दोषी ठहराया, बल्कि उन पर साम्प्रदायिक और सांस्कृतिक संवेदनाओं को ठेस पहुंचाने के गंभीर आरोप भी लगाए। उनके भाषण के अनुसार, RJD-कांग्रेस और सपा “राम व मां जानकी” जैसे आस्था-आधारित प्रतीकों के विरोधी हैं और इन्हीं के कारण समाज में अस्थिरता और अव्यवस्था फैली। साथ ही उन्होंने दावा किया कि कुछ विपक्षी पार्टियां अपराधियों और गुनहगारों का समर्थन करती हैं और उन्हें राजनीतिक संरक्षण देती हैं, जिससे कानून-व्यवस्था प्रभावित होती है। भाषण के दौरान योगी ने पिछले दिनों बिहार में बताए गए आलोकों का उल्लेख करते हुए कहा कि राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी सड़कों पर पुलिस के आने का भय दिखाकर विकास को रोकने का भी आरोप लगाते थे-यही बात उन्होंने उदाहरण के साथ पेश की और कहा कि ऐसे माहौल में आम लोगों की परेशानियाँ बढ़ती हैं। दूसरी ओर, उन्होंने केंद्र सरकार की नीतियों-जैसे बड़े सरलीकरण या सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं-का जिक्र कर किसानों और बुजुर्गों के हित में उठाये गए कदमों की प्रशंसा की और इसे सहयोगी सरकारों की उपलब्धि बताया। भाषण में उन्होंने देश के संवैधानिक और प्रशासनिक निर्णयों का भी हवाला दिया; उदाहरणस्वरूप उन्होंने आर्टिकल 370 का जिक्र करते हुए इसे एक तरह की ‘घुसपैठियों से मुक्त करने’ की कार्रवाई से जोड़कर बताया और कहा कि उसी तरह की ठोस कार्रवाई बिहार में भी हो सकती है, यदि लोग एनडीए को समर्थन दें। राजनीतिक भाषा में यह सब स्पष्ट संकेत था कि वे कठोर, अनुशासित और विकास-केंद्रित प्रशासन का मॉडल दिखाना चाह रहे थे और विपक्षी विकल्पों को अस्थिरता और अव्यवस्था से जोड़कर प्रस्तुत कर रहे थे।

प्रभाव, प्रतिक्रियाएँ और चुनावी पृष्ठभूमि

योगी के तीखे भाषण ने चुनावी गलियारों में नई बहस जन्म दी है। उनके बुलडोजर के संदर्भ और अपराधियों पर ‘दंडात्मक’ कार्रवाई के वादे से समर्थक उत्साहित हैं, जबकि विरोधी गुट इसे भय-प्रचार और सामाजिक कटुता बढ़ाने वाला करार दे रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह की कभुकठोर भाषा कुछ वर्गों में असरदार हो सकती है, खासकर उन मतदाताओं में जो कानून-व्यवस्था और त्वरित निस्तारण की मांग रखते हैं, परंतु आलोचक इसे संवैधानिक सीमाओं और न्यायिक प्रक्रिया के प्रति अनादर के रूप में भी देख रहे हैं। चुनावी पटल पर योगी की दलीलें विकास, सुशासन और धार्मिक भावनाओं के संरक्षण पर केन्द्रित रहीं, जबकि विपक्षी दलों के प्रतिनिधियों से अपेक्षित प्रतिक्रियाएँ-जो आरोपों के खंडन और स्वतंत्र न्यायिक/प्रशासनिक प्रक्रिया की बात करती-पहले चरण की रैलियों में तेज होंगी। इस पृष्ठभूमि में यह भी ध्यान देने योग्य है कि किसी भी बड़े सार्वजनिक नेता के कठोर बयान का चुनावी असर कई स्तरों पर परखा जाता है-स्थानीय मुद्दे, जातीय समीकरण, मतदाता-आर्कषण और विपक्ष की प्रतिक्रिया। आने वाले दिनों में बिहार के विभिन्न जिलों में आयोजित सभाओं और मीडिया-परिचर्चाओं में इन बयानों पर व्यापक बहस देखने को मिलेगी और यह भी तय होगा कि क्या ये टकराव चुनाव के परिणामों को मोड़ने में निर्णायक साबित होंगे। अंततः, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में कानून और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के दायरे में रहकर ही किसी भी तरह की सख्ती को लागू करने की आवश्यकता होगी; यही सवाल चुनावी बहस का मुख्य केन्द्रीय बिंदु बने रहने की संभावना रखता है।

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