बिहार चुनाव 2025 के बीच महागठबंधन के सीएम फेस तेजस्वी यादव ने एक बयान देकर सियासी हलचल मचा दी है। उन्होंने कहा कि अगर उनकी सरकार बनी, तो वे केंद्र सरकार द्वारा पारित वक्फ (संशोधन) कानून को “कूड़ेदान में फेंक देंगे।” यह बयान मुस्लिम बहुल इलाकों में चुनावी प्रचार के दौरान आया, जिसके बाद बीजेपी समेत पूरा एनडीए उन पर हमलावर हो गया। डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने कहा-“तेजस्वी यादव नमाजवादी हैं, संविधान को नहीं मानते। कोई मुख्यमंत्री केंद्र के बनाए कानून को कैसे रद्द कर सकता है?” दरअसल, इस बयान के बाद यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या वास्तव में राज्य सरकार केंद्र के कानून को पलट सकती है या यह सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी है। वक्फ कानून संविधान की समवर्ती सूची में शामिल है, यानी इस पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं, लेकिन किसी भी टकराव की स्थिति में केंद्र का कानून ही मान्य होगा। इसलिए कानूनी रूप से तेजस्वी यादव वक्फ एक्ट को रद्द नहीं कर सकते। विशेषज्ञों के अनुसार, यह बयान कानूनी कम, राजनीतिक ज्यादा है।
मुस्लिमों की नाराज़गी और ओवैसी फैक्टर को साधने की रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, तेजस्वी यादव का यह बयान पूरी तरह मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रखकर दिया गया है। 2011 की जनगणना के अनुसार, बिहार में मुस्लिम आबादी करीब 18% है और 60 से अधिक विधानसभा सीटों में उनका प्रभाव निर्णायक है। सीमांचल के अमौर, कोचाधामन, बायसी और बहादुरगंज जैसी सीटों पर मुस्लिम वोटर 70% से भी अधिक हैं। इस बार AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने 32 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है, जिनमें से आधी सीमांचल की हैं। ओवैसी लगातार महागठबंधन पर मुस्लिमों की उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं और यह कह चुके हैं कि 18% आबादी के बावजूद किसी मुस्लिम चेहरे को डिप्टी सीएम पद का उम्मीदवार नहीं बनाया गया। ऐसे में तेजस्वी का वक्फ कानून वाला बयान AIMIM के बढ़ते प्रभाव को कम करने और मुस्लिमों की गोलबंदी को अपने पक्ष में करने की रणनीति माना जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषक सत्यभूषण सिंह कहते हैं-“पिछले दिनों सोशल मीडिया पर यह स्लोगन चला था कि 13% वाला मुख्यमंत्री और 2% वाला डिप्टी सीएम बनेगा, जबकि 18% वाला सिर्फ दरी बिछाएगा। तेजस्वी यादव को इस असंतोष का अहसास है। इसलिए उन्होंने मुस्लिमों को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वे उनके अधिकारों और धार्मिक संस्थाओं की रक्षा के लिए सबसे आगे हैं।”
चुनावी असर और NDA पर प्रभाव
तेजस्वी यादव का यह बयान एक तरफ मुस्लिम मतदाताओं में जोश भरने का प्रयास है, तो दूसरी ओर यह भाजपा को कट्टर हिंदू वोटर बेस को और अधिक एकजुट करने का मौका देता है। लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि वक्फ कानून जैसे मुद्दे का सीधा असर एनडीए की चुनावी संभावनाओं पर नहीं पड़ेगा। प्रो. संजय कुमार बताते हैं-“बिहार में मुसलमान पारंपरिक रूप से एनडीए के वोटर नहीं रहे हैं। 2005 में केवल 4% मुस्लिम वोट NDA को मिले थे, जबकि 40% RJD गठबंधन को। 2015 में जब नीतीश, लालू और कांग्रेस साथ आए, तब 69% मुसलमानों ने उन्हें वोट किया। 2020 में यह बढ़कर 76% तक पहुंच गया।”
उनके मुताबिक, तेजस्वी यादव का यह बयान बीजेपी या एनडीए के खिलाफ नहीं बल्कि ओवैसी फैक्टर के खिलाफ है। ओवैसी 2020 में सीमांचल की 5 सीटें जीतकर साबित कर चुके हैं कि वे महागठबंधन के वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए इस बार तेजस्वी यादव धर्म और भावनाओं का सहारा लेकर मुस्लिम वोटरों को एकजुट रखने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि कानूनी तौर पर वे वक्फ कानून को “कूड़ेदान में फेंक” नहीं सकते, लेकिन चुनावी राजनीति में यह बयान उनके लिए “धार्मिक प्रतीक” की तरह काम कर सकता है। नतीजे कुछ भी हों, यह तय है कि बिहार का चुनाव अब केवल जाति और विकास के मुद्दों पर नहीं, बल्कि धर्म और पहचान की राजनीति पर भी निर्णायक रूप से लड़ा जाएगा।




