तेजस्वी का AIMIM और PK ऑफर ठुकराना
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक परिदृश्य बेहद जटिल होता जा रहा है। राजद अध्यक्ष तेजस्वी यादव ने AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और जनसुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर के गठबंधन प्रस्तावों को ठुकरा दिया है। 2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM ने पांच सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन चार विधायक बाद में RJD में शामिल हो गए। इस बार AIMIM ने 32 सीटों पर उम्मीदवार उतारने की योजना बनाई है, जिनमें कई मौजूदा महागठबंधन के विधायक की सीटें शामिल हैं। पार्टी ने तेजस्वी से छह सीटों का मांग पत्र भी भेजा, लेकिन RJD ने इस पर कोई सकारात्मक जवाब नहीं दिया। इसी तरह, प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी ने 116 सीटों के लिए उम्मीदवार घोषित किए, जिसमें 21 मुस्लिम उम्मीदवार शामिल हैं। RJD ने इन प्रस्तावों का कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया, जिससे स्पष्ट हो गया कि मुस्लिम वोट बैंक पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए तेजस्वी अपनी रणनीति पर भरोसा कर रहे हैं।
मुस्लिम वोट बैंक और चुनावी गणित
बिहार में मुस्लिम समुदाय लगभग 17 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करता है और यह लगभग 50 विधानसभा सीटों पर निर्णायक साबित हो सकता है। सीमांचल और कटिहार जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम वोट की संख्या अधिक है, जहां मतदान के पैटर्न का सीधा असर NDA और महागठबंधन के प्रदर्शन पर पड़ सकता है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मुस्लिम वोट अगर बंटे तो सीधे NDA को फायदा होगा। 2015 के विधानसभा चुनावों में महागठबंधन ने मुस्लिम वोटों का 59-78 प्रतिशत समर्थन हासिल किया था, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में 89 प्रतिशत मुस्लिम वोट महागठबंधन के पक्ष में गया। इस बार AIMIM और जनसुराज पार्टी की एंट्री से यह वोट बैंक दो-दावेदारों के बीच बंट सकता है। हालांकि, अधिकांश मुस्लिम मतदाता अभी भी महागठबंधन की ओर झुके हुए हैं, जिससे RJD को आशा है कि उनका वोट बैंक सुरक्षित रहेगा।
पार्टियों की रणनीति और भविष्य की संभावनाएँ
AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल ईमान ने सीमांचल, मिथिलांचल, मगध और अंग क्षेत्र में सक्रियता बढ़ा दी है, जबकि RJD का दावा है कि मुस्लिम मतदाता बिखराव से बचते हुए राजनीतिक बहुरूपियों की पहचान कर सकते हैं। जनसुराज पार्टी मुस्लिम आबादी के अनुसार हिस्सेदारी देने की बात कर रही है और 40 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतार रही है। राजनीतिक विश्लेषक ओमप्रकाश अश्क का कहना है कि अगर मुस्लिम वोट बंगाल की तरह एकीकृत रहे, तो तेजस्वी को नुकसान नहीं होगा। वहीं, प्रो. पुष्पेंद्र के अनुसार, मुस्लिम समुदाय के लिए स्थिति स्पष्ट है और AIMIM या जनसुराज सरकार बनाने की दावेदारी नहीं कर रहे, इसलिए वोट का बंटवारा अपेक्षाकृत कम होगा। RJD और कांग्रेस की रणनीति भी इसी स्थिति को भुनाने की ओर केंद्रित है। कुल मिलाकर, बिहार विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट की गणना निर्णायक भूमिका निभा सकती है और यह तय करेगा कि महागठबंधन अपने प्रदर्शन को बनाए रख पाता है या नहीं।