सूची और प्रमुख निष्कर्ष: रामगोपाल-शिवपाल की अनुपस्थिति ने बढ़ाई चर्चाएँ
समाजवादी पार्टी (सपा) ने बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र शुक्रवार को 20 स्टार प्रचारकों की आधिकारिक सूची जारी कर दी है, जिसमें कई नाम राजनीतिक और सामाजिक विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं। सूची में सबसे ऊपर राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का नाम है, जिसके बाद किरणमय नंदा और तीसरे नंबर पर आजम खान का नाम रखा गया है – जो अपनी राजनीतिक पकड़ और मुस्लिम समारोहों में प्रभाव के लिए जाने जाते हैं। चर्चा का मुख्य बिंदु यह रहा कि पार्टी के वरिष्ठ और संगठनात्मक नेता रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव की सूची में उपस्थिति नहीं है; यह विसंगति राजनीतिक महौल और दल के अंदरूनी संतुलन के इशारों को लेकर सुर्खियों में आई। रामगोपाल और शिवपाल दोनों सपा के मायने रखते हैं – एक राष्ट्रीय महासचिव और दूसरे महासचिव पद पर – अत: उनकी गैरमौजूदगी ने राजनीतिक विश्लेषकों और स्थानीय कार्यकर्ताओं के बीच अटकलें तेज कर दी हैं। सपा ने स्पष्ट किया है कि बिहार में वह प्रत्यक्ष चुनाव नहीं लड़ रही, बल्कि INDI गठबंधन का खुलकर समर्थन कर रही है; इसलिए ये स्टार प्रचारक बिहार में गठबंधन के उम्मीदवारों के समर्थन में सक्रिय प्रचार करेंगे। सूची के संकलन में जातीय संतुलन और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व का स्पष्ट ध्यान रखा गया है – दलित, पिछड़ा, भूमिहार, ब्राह्मण और मुस्लिम समुदायों से संबंधित नेताओं को स्थान देकर एक समग्र चुनावी रणनीति रची गई है, ताकि बिहार के जटिल सामाजिक ताने-बाने में सपा का प्रभाव बढ़ाया जा सके।
सूची का जातीय-भूगोलिक समीकरण और सियासी संदेश
सपा की सूची में जातीय समावेशन पर खास जोर देखा गया है; दलित प्रतिनिधियों में अवधेश प्रसाद और प्रिया सरोज को जगह देकर पार्टी ने दलित वोट बैंक को टार्गेट करने का इरादा जाहिर किया है, जबकि पिछड़े वर्ग की झलक बाबू सिंह कुशवाहा, नरेश उत्तम पटेल और रमाशंकर विद्यार्थी राजभर के रूप में मिलती है। भूमिहार, ठाकुर और ब्राह्मण जैसी जातियाँ भी सूची में शामिल हैं – राजीव राय, ओम प्रकाश सिंह और सनातन पांडेय के नाम इस रणनीति को रेखांकित करते हैं। मुस्लिम मोर्चे पर आजम खान के अलावा अफजाल अंसारी और इकरा हसन को स्थान देकर पार्टी ने स्पष्ट संकेत दिया कि वह INDI गठबंधन के साथ मिलकर मुसलमानों के समेकित समर्थन की कोशिश करेगी। इस विभाजन से यह संदेश भी जाता है कि सपा किसी एक सामाजिक समूह तक सीमित नहीं रहना चाहती, वह बिहार के बहुआयामी चुनावी परिदृश्य में अपनी पैठ बनाने के उद्देश्य से व्यापक चुनावी कैम्पेन चलाएगी। राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि इस तरह की सूची पर केवल नामों का चुनाव ही नहीं, बल्कि उनका क्रम – उदाहरण के तौर पर आजम का तीसरा स्थान – भी महत्व रखता है क्योंकि यह प्रभाव व प्राथमिकता का संकेत देता है। साथ ही तेज प्रताप यादव का शामिल होना भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वह न केवल अखिलेश के परिजनों में आते हैं बल्कि लालू परिवार से भी उनके रिश्ते का राजनीतिक मायने है; यह जोड़-तोड़ व गठबंधन के विविध समीकरणों की सूक्ष्म रणनीति दर्शाता है। कुल मिलाकर यह लिस्ट सपा की रणनीति के एक हिस्से के रूप में पढ़ी जा सकती है – एक तरफ INDI गठबंधन के साथ साझेदारी को मजबूत करना और दूसरी तरफ खुद को बिहार के जातीय-राजनीतिक परिदृश्य के अनुकूल दिखाना।
प्रचार रणनीति, चुनावी समयरेखा और संभावित असर
राजनीतिक संदर्भ में यह भी जरूरी है कि सपा के शीर्ष नेतृत्व ने स्पष्ट किया है कि अखिलेश स्वयं 25 अक्टूबर से बिहार का दौरा शुरू कर रहे हैं, जो कि गठबंधन समर्थक गतिविधियों को गति देगा। बिहार में चुनाव दो फेज में होंगे – मतदान 6 और 11 नवंबर को और परिणाम 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे – ऐसे समय में स्टार प्रचारकों की भूमिका निर्णायक हो सकती है, खासतौर से उन जिलों और बूथों में जहाँ गठबंधन के प्रत्याशी मजबूत या नाजुक बने हुए हैं। सूची तैयार करते समय पार्टी ने यह भी ध्यान रखा होगा कि हर प्रमुख जाति और समुदाय से जुड़े नेताओं को शामिल कर वह स्थानीय मुद्दों और भावनात्मक जुड़ाव को भुनाने का प्रयास करे; यह रणनीति बूथ-स्तर पर वोटिंग मशीनरी को सक्रिय करने और स्थानीय कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने में मदद कर सकती है। सपा प्रमुख अखिलेश के बयान, जिसमें उन्होंने बिहार में बदलाव की अपेक्षा और भाजपा पर तीखा निशाना भी साधा, इस रणनीति का सार्वजनिक बहिर्वाह है – वह कहते दिखाई दिए कि बिहार की जनता अब बदलना चाहती है और INDI गठबंधन को मौका देगी। चुनावी गणित के लिहाज से सपा की यह पहल-हालांकि पार्टी स्वयं संपूर्ण चुनाव मैदान में नहीं है-INDI गठबंधन के लिए अतिरिक्त ब्रॉड बेसियू समर्थन और उत्तर प्रदेश की राजनीति से बिहार तक प्रभावी संदेश पहुंचाने का माध्यम बन सकती है। इस सूची का वास्तविक प्रभाव तब ही मापा जाएगा जब स्टार प्रचारक स्थानीय सभाओं में उतरकर मतदाताओं को जोड़ने की क्षमता दिखाएंगे और गठबंधन के उम्मीदवारों के पक्ष में वाकई में जनसमर्थन जुटेगा; तब यह स्पष्ट होगा कि क्या सपा की रणनीति बिहार के चुनावी नतीजों पर निर्णायक छाप छोड़ पाएगी या नहीं।




