बिहार की सियासत उस वक्त गर्मा गई जब बेऊर जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे बाहुबली और पूर्व विधायक विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला को अचानक भागलपुर सेंट्रल जेल स्थानांतरित कर दिया गया। यह तब हुआ जब विधानसभा चुनाव के मद्देनजर सरकार ने 14 कुख्यात बंदियों को सुरक्षा कारणों से एक जेल से दूसरी जेल में भेजा। लेकिन इस कदम ने राजनीतिक माहौल में हलचल मचा दी है, क्योंकि लालगंज विधानसभा से राजद प्रत्याशी और मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला ने इसे “साजिश” करार दिया है। शिवानी ने बेबाक अंदाज में कहा कि उनके पिता को जान से मारने की योजना बनाई जा रही है और उन्हें मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा, “अगर मेरे पापा को एक खरोंच भी आई, तो मैं इस सरकार को छोड़ूंगी नहीं। मैं वकील हूं और अपने अधिकार जानती हूं।” उनके मुताबिक, एक ऐसा व्यक्ति जो गंभीर बीमारी से पीड़ित है और किसी से बात करने की स्थिति में नहीं है, उसे अचानक दूर भेज देना किसी सोची-समझी चाल का हिस्सा है।
पत्नी अन्नु शुक्ला ने NDA पर साधा निशाना, कहा – जनता देखे सरकार क्या कर रही है
मुन्ना शुक्ला की पत्नी अन्नु शुक्ला, जो खुद भी राजनीति में सक्रिय रही हैं, ने भी सरकार के इस फैसले को अमानवीय बताया। उन्होंने जनता से भावुक अपील करते हुए कहा, “छठी माई और लालगंज की जनता से मैं हाथ जोड़कर कहती हूं कि मेरे पति के साथ अन्याय हुआ है। उन्हें भागलपुर जेल भेजा गया है, जो बिल्कुल गलत है। जनता अब देखे कि NDA सरकार क्या कर रही है।” अन्नु शुक्ला ने कहा कि जनता को अपने बेटे की तरह मुन्ना शुक्ला के परिवार का साथ देना चाहिए क्योंकि जो अन्याय उनके परिवार के साथ हुआ है, वह आने वाले वक्त में किसी और के साथ भी हो सकता है। उन्होंने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि “यह कदम माफी योग्य नहीं है।” राजनीतिक जानकारों का कहना है कि यह बयान चुनावी माहौल में सरकार के खिलाफ विपक्ष को नया मुद्दा दे सकता है, खासकर तब जब लालगंज सीट पर राजद की ओर से शिवानी शुक्ला मैदान में हैं।
शिवानी का राजनीतिक सफर और पिता के खिलाफ पुराने मामले फिर सुर्खियों में
राजद ने वैशाली की लालगंज सीट से शिवानी शुक्ला को उम्मीदवार बनाया है। उनके पिता मुन्ना शुक्ला, जो कभी नीतीश सरकार में प्रभावशाली नेता माने जाते थे, अब बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड में सजा काट रहे हैं। 1998 में पटना के IGIMS में बृजबिहारी प्रसाद की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उस समय बिहार में राबड़ी देवी की सरकार थी और इस केस में मुन्ना शुक्ला समेत कई बाहुबलियों को आरोपी बनाया गया था। इस हत्याकांड ने बिहार की राजनीति की दिशा बदल दी थी, और आज भी यह केस राज्य के आपराधिक-राजनीतिक गठजोड़ की प्रतीक घटना माना जाता है। शिवानी शुक्ला का राजनीतिक सफर भी विवादों से रहित नहीं रहा। जब कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया था, तो उन्होंने भावुक होकर कहा था, “अगर मेरे पास पैसे होते तो मैं भी टिकट खरीद लेती।” बाद में राजद ने उन्हें मौका दिया और उन्होंने पार्टी सिंबल लेकर नामांकन दाखिल किया। हाल ही में उन्हें जान से मारने की धमकी भी मिली, जिसने मामले को और संवेदनशील बना दिया। पुलिस जांच में सामने आया कि धमकी देने वाला शख्स किसी राजनीतिक दल का समर्थक था और उसने अपने भाई को फंसाने के लिए यह कॉल किया था। हैदराबाद से उसकी गिरफ्तारी के बाद यह मामला शांत हुआ, लेकिन इससे शिवानी की सुरक्षा पर सवाल उठे। अब जब उनके पिता को दूर की जेल भेजा गया है, तो परिवार ने इसे “राजनीतिक प्रतिशोध” की संज्ञा दी है। बिहार की राजनीति में जहां एक ओर कानून-व्यवस्था और बाहुबल का पुराना समीकरण फिर से उभर रहा है, वहीं दूसरी ओर यह घटना चुनावी गणित को भी प्रभावित कर सकती है। शिवानी का बयान न केवल भावनात्मक प्रतिक्रिया है, बल्कि यह बिहार की उस राजनीति का आईना भी है जहां परिवार, सत्ता और साजिशें हमेशा आपस में जुड़ी रही हैं।




