बिहार विधानसभा चुनाव के बीच बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आर.के. सिंह का बयान राजनीतिक हलकों में गहरी हलचल पैदा कर रहा है। उन्होंने एक वीडियो संदेश जारी कर राज्य की जनता से अपील की कि अगर सभी उम्मीदवार बेईमान, आपराधिक छवि वाले या चरित्रहीन हैं, तो बेहतर होगा कि वे इस बार NOTA का बटन दबाएं। उन्होंने कहा कि बिहार को भ्रष्टाचार, अपराध और जातीय राजनीति से मुक्त कराने का एकमात्र तरीका है कि जनता ऐसे नेताओं को वोट न दे जो प्रदेश की छवि धूमिल कर रहे हैं। आर.के. सिंह ने छठ महापर्व की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि इस चुनाव में जनता को जात-पात और परिवारवाद से ऊपर उठकर निर्णय लेना चाहिए। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अगर लोग सिर्फ जाति या दल देखकर वोट देंगे, तो बिहार कभी तरक्की नहीं कर पाएगा। सिंह ने अपने फेसबुक पेज पर जारी इस वीडियो में कहा कि आज के हालात में कोई भी दल पूरी तरह निर्दोष नहीं है। चाहे एनडीए हो या इंडिया गठबंधन, दोनों ने अपने-अपने उम्मीदवारों के चयन में योग्यता और ईमानदारी की बजाय राजनीतिक गणित को प्राथमिकता दी है। उन्होंने कहा कि जनता को अब तय करना होगा कि वो बिहार के भविष्य को किन हाथों में देना चाहती है – ऐसे नेताओं के जो सिर्फ सत्ता के लिए राजनीति करते हैं या उन प्रतिनिधियों के जो वास्तव में जनता के विकास के लिए समर्पित हैं।
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव पर आर.के. सिंह के तीखे वार
अपने संदेश में आर.के. सिंह ने नीतीश कुमार और तेजस्वी प्रसाद यादव दोनों पर तीखे प्रहार किए। उन्होंने कहा कि महागठबंधन के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव न तो उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और न ही शासन चलाने का अनुभव रखते हैं। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि जब कोई व्यक्ति मैट्रिक तक भी पास नहीं है, तो वह राज्य जैसे विशाल तंत्र को कैसे समझेगा और चलाएगा। सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री बनने के लिए पढ़ा-लिखा, समझदार और ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए, जो निर्णय लेने की क्षमता रखता हो और प्रशासनिक जिम्मेदारियों को समझ सके। उन्होंने तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के मामलों का भी उल्लेख किया और कहा कि ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाना बिहार के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा। वहीं एनडीए की ओर इशारा करते हुए आर.के. सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत को लेकर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अब नीतीश कुमार पहले जैसे सक्रिय नहीं रहे और भाजपा नेताओं के बीच भी भ्रष्टाचार और आपराधिक मामलों में घिरे चेहरे मौजूद हैं। सिंह ने व्यंग्य करते हुए कहा कि भाजपा नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव तो लड़ रही है, लेकिन ये नहीं कह रही कि जीत के बाद वही मुख्यमंत्री होंगे। उन्होंने दावा किया कि नीतीश जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है और याददाश्त कमजोर हो गई है, इसलिए यह भी स्पष्ट नहीं कि चुनाव के बाद पार्टी का नेतृत्व किसके हाथों में जाएगा। उनके मुताबिक, अगर भाजपा फिर से नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाती है तो यह व्यवस्था ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी और अंततः पार्टी को नया मुख्यमंत्री ढूंढना पड़ेगा।
भाजपा और विपक्ष दोनों पर आरोप, जनता से सोच-समझकर फैसला करने की अपील
आर.के. सिंह ने भाजपा के नेताओं पर भी गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पर हत्या का आरोप रहा है और वे दसवीं कक्षा तक ही पढ़े हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा के नेता नित्यानंद राय पर हत्या और अपहरण जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं, जबकि प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पर भी आपराधिक आरोप लगाए जा चुके हैं। सिंह के अनुसार, भाजपा के ये तीनों प्रमुख चेहरे उसी तरह के हैं जैसे राजद के कई नेता हैं जिन पर भ्रष्टाचार या आपराधिक पृष्ठभूमि के आरोप हैं। उन्होंने कहा कि जब दोनों तरफ ऐसे ही चेहरे चुनाव मैदान में हैं, तो जनता को अब यह सोचने की जरूरत है कि किसे चुनना है। उन्होंने जनसुराज पार्टी का जिक्र करते हुए कहा कि यह एक नई राजनीतिक शक्ति है, जिसका मूल्यांकन अभी जनता ने नहीं किया है। इसलिए बिहार के मतदाताओं को चाहिए कि वे इस बार अपने वोट का इस्तेमाल बहुत सोच-समझकर करें और किसी दबाव या प्रलोभन में आए बिना सही निर्णय लें। आर.के. सिंह के इस बयान के बाद राज्य की राजनीति में खलबली मच गई है। जहां एनडीए खेमे में असहजता देखी जा रही है, वहीं विपक्षी दलों ने इसे भाजपा के भीतर की नाराजगी का संकेत बताया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सिंह का यह बयान भाजपा के लिए असुविधाजनक स्थिति पैदा कर सकता है क्योंकि इससे जनता के बीच भ्रम की स्थिति बन रही है। कई नेताओं का कहना है कि आर.के. सिंह का यह बयान न सिर्फ राजनीतिक रूप से साहसिक है बल्कि यह एक नैतिक चेतावनी भी है कि अब जनता को खुद जागरूक होकर अपने भविष्य का फैसला करना चाहिए। अब देखना होगा कि बिहार के मतदाता उनके इस आह्वान को कितना गंभीरता से लेते हैं और क्या वास्तव में इस चुनाव में NOTA एक बड़ा संदेश बन पाएगा या सियासी समीकरण पहले जैसे ही रहेंगे।




