बिहार की राजनीति में सोमवार को बड़ा घटनाक्रम देखने को मिला जब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने दरभंगा जिले के गौराबौड़ाम विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे अपने नेता मोहम्मद अफजल अली खां को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निष्कासित कर दिया। पार्टी की ओर से जारी आधिकारिक पत्र में यह स्पष्ट किया गया कि अफजल अली ने गठबंधन के फैसले की अनदेखी करते हुए निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में उतरने का फैसला लिया था, जो पार्टी अनुशासन के खिलाफ है। इस पत्र पर प्रदेश अध्यक्ष मंगनीलाल मंडल और महासचिव मुकुंद सिंह के हस्ताक्षर हैं। संगठन ने यह कदम न केवल पार्टी के अनुशासन की रक्षा के लिए बल्कि INDIA गठबंधन की एकजुटता बनाए रखने के उद्देश्य से उठाया है। पत्र में बताया गया कि गौराबौड़ाम विधानसभा सीट को महागठबंधन की सीट-बंटवारे की प्रक्रिया में विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को सौंपा गया था, और इस सीट से संतोष सहनी को आधिकारिक उम्मीदवार घोषित किया गया था। पार्टी ने अफजल अली को निर्देश दिया था कि वे गठबंधन धर्म का सम्मान करें और अपना नामांकन वापस लें, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इस स्थिति ने सीधे तौर पर एनडीए गठबंधन को राजनीतिक लाभ पहुंचाने की स्थिति उत्पन्न की, जिसके बाद पार्टी ने सख्त कार्रवाई का निर्णय लिया। आरजेडी ने अपनी कार्रवाई को संगठनात्मक मजबूती के लिए आवश्यक बताते हुए अफजल अली को छह वर्षों के लिए पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निष्कासित कर दिया।
गठबंधन धर्म की अवहेलना और राजनीतिक समीकरणों में हलचल
गौराबौड़ाम सीट को लेकर जो विवाद शुरू हुआ, उसने महागठबंधन के भीतर असहमति की स्थिति पैदा कर दी है। आरजेडी का मानना है कि गठबंधन में तय हुई सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों को अपनी प्रतिबद्धता निभानी चाहिए, क्योंकि ऐसा न करने पर जनता के बीच गलत संदेश जाता है और विपक्षी गठबंधन को इसका सीधा फायदा मिलता है। दरभंगा जिला संगठन को भी इस निर्णय की जानकारी भेजी गई है ताकि स्थानीय स्तर पर पार्टी अनुशासन को और मजबूत किया जा सके। वहीं राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस घटना ने गठबंधन के अंदर तालमेल की कमी को उजागर किया है। अफजल अली खां लंबे समय से आरजेडी से जुड़े हुए हैं और उन्होंने कई मौकों पर संगठन को मजबूत करने में भूमिका निभाई है। लेकिन इस बार पार्टी के आधिकारिक निर्णय के बावजूद मैदान में डटे रहने से उनके खिलाफ कार्रवाई अपरिहार्य हो गई। आरजेडी नेतृत्व ने स्पष्ट संदेश दिया है कि कोई भी नेता या कार्यकर्ता पार्टी की नीति और गठबंधन के अनुशासन से ऊपर नहीं है। यह निर्णय उन सभी नेताओं के लिए भी चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है जो व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के चलते संगठनात्मक आदेशों की अनदेखी करते हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कार्रवाई न केवल आरजेडी की साख बचाने का प्रयास है बल्कि चुनावी रणनीति के लिहाज से भी जरूरी कदम था, जिससे महागठबंधन के भीतर भरोसे का माहौल बना रहे।
अफजल अली का पलटवार: निष्कासन पत्र को बताया फर्जी, कहा- साजिश के तहत फैलाया गया भ्रम
आरजेडी के इस कदम के बाद मोहम्मद अफजल अली खां ने सोशल मीडिया पर खुलकर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि जो पत्र वायरल हो रहा है, वह पूरी तरह झूठा और मनगढ़ंत है। उनके अनुसार, कुछ विरोधी तत्व उनकी लोकप्रियता से घबरा गए हैं और साजिश के तहत ऐसा पत्र फैलाकर भ्रम की स्थिति पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। अफजल ने कहा कि जनता का अपार समर्थन और उनके प्रति बढ़ती लोकप्रियता देखकर विपक्षी खेमे की जमीन खिसक गई है। अब वही लोग चुनावी हार के डर से झूठी बातें फैलाने में जुटे हैं। उन्होंने खुद को अब भी आरजेडी का सच्चा सिपाही बताया और कहा कि वे हमेशा लालू यादव के विचारों और जनता की सेवा के लिए प्रतिबद्ध हैं। अफजल ने प्रशासन से मांग की है कि जो लोग सोशल मीडिया पर झूठे पत्र फैलाकर जनता को गुमराह कर रहे हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। उन्होंने यह भी कहा कि जनता सब जानती है और सच्चाई चुनावी मैदान में खुद साबित होगी। इस बयान के बाद दरभंगा के सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है। कई स्थानीय नेताओं का मानना है कि यह मामला सिर्फ एक निष्कासन का नहीं, बल्कि गठबंधन राजनीति की आंतरिक खींचतान का संकेत है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अफजल अली की लोकप्रियता को देखते हुए यह विवाद चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है, खासकर उस क्षेत्र में जहां आरजेडी और वीआईपी दोनों ही मतदाताओं के बीच पकड़ मजबूत करने की कोशिश में हैं। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि आरजेडी इस विवाद को कैसे संभालती है और क्या मोहम्मद अफजल भविष्य में स्वतंत्र रूप से चुनावी मैदान में उतरते हैं या कोई नई राजनीतिक दिशा चुनते हैं।




