रामपुर रियासत के अंतिम नवाब रजा अली खान की बेटी नवाबजादी मेहरुन्निसा बेगम का 92 वर्ष की आयु में अमेरिका के वॉशिंगटन डीसी में निधन हो गया। मंगलवार को उन्होंने अंतिम सांस ली और वहीं पर उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया गया। परिजनों के अनुसार, दफन के दौरान केवल कुछ गिने-चुने शाही परिवार के सदस्य मौजूद थे जिन्होंने कब्र पर फातिहा पढ़ी। मेहरुन्निसा बेगम लगभग पांच दशक पहले भारत छोड़कर अमेरिका चली गई थीं, जहां उन्होंने अपनी पहचान एक शिक्षिका और भारतीय संस्कृति की संवाहक के रूप में बनाई। उन्होंने वॉशिंगटन स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर लैंग्वेज स्टडीज में लंबे समय तक उर्दू और हिंदी की अध्यापिका के रूप में कार्य किया। उनका जीवन रामपुर के गौरवशाली इतिहास और आधुनिक प्रवास के बीच एक सेतु की तरह रहा। परिवारिक सूत्रों के मुताबिक, मेहरुन्निसा बेगम ने दो विवाह किए थे-पहला भारतीय सिविल सेवा अधिकारी सैयद तकी नकी से और दूसरा पाकिस्तान के पूर्व एयर चीफ मार्शल अब्दुर्रहीम खान से। दोनों विवाहों ने उनके जीवन को दो अलग-अलग सांस्कृतिक परिवेशों से जोड़ा, परंतु उनका मन हमेशा अपने मायके रामपुर की शाही परंपरा से जुड़ा रहा।
शाही परिवार में जन्म, शिक्षा और पारिवारिक जीवन की झलक
रामपुर इंटेक रुहेलखंड चैप्टर के सह संयोजक काशिफ खां के अनुसार, मेहरुन्निसा बेगम का जन्म 24 जनवरी 1933 को रामपुर में हुआ था। वे नवाब रजा अली खान की तीसरी पत्नी तलअत जमानी बेगम की पुत्री थीं। शाही परिवार की परंपराओं के अनुरूप उनका बचपन बेहद अनुशासित और सांस्कृतिक माहौल में बीता। मसूरी और लखनऊ जैसे शिक्षण केंद्रों में उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, जिसके बाद विवाह के उपरांत 1977 में वे अमेरिका चली गईं। उनके चार संतानें थीं – दो बेटे और दो बेटियां। बेटों में से एक आबिद खान का कुछ वर्ष पहले निधन हो गया, जबकि दूसरे बेटे जैन नकी ने जीवन के अंतिम दिनों तक अपनी मां की देखभाल की। बेटियों में जेबा हुसैन और मरयम खान अमेरिका में रह रही हैं और दोनों ही सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय हैं। मेहरुन्निसा बेगम अपने छह बहनों में दूसरे क्रम पर थीं। उनके पिता नवाब रजा अली खान के तीन बेटे – मुर्तजा अली खान, जुल्फिकार अली खान और आबिद अली खान – अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनकी बहनों में कुछ का पहले ही निधन हो चुका है, जबकि बिरजिस लका बेगम और नाहीद लका बेगम दिल्ली में, और अख्तर लका बेगम लखनऊ में निवास कर रही हैं। नवाब परिवार के सदस्यों ने उनके निधन को एक युग के अंत के रूप में देखा है। पूर्व सांसद बेगम नूरबानो ने कहा कि मेहरुन्निसा बेगम रामपुर की सांस्कृतिक धरोहर और शाही वंश की गरिमा का प्रतीक थीं। वहीं, नवाब काजिम अली खान उर्फ नवेद मियां ने इसे परिवार के लिए अपूरणीय क्षति बताया और कहा कि उनका जीवन शालीनता, शिक्षा और संस्कृति के सम्मान का उदाहरण रहा।
रामपुर रियासत की विरासत और नवाबजादी की पहचान
रामपुर रियासत उत्तर भारत का वह क्षेत्र रहा है, जिसने अपने नवाबों की दूरदृष्टि और प्रशासनिक कौशल से इतिहास में एक विशिष्ट स्थान बनाया। नवाब अली मोहम्मद खान ने इस रियासत की स्थापना की थी, जो स्वतंत्रता से पहले उत्तर भारत में एक शक्तिशाली रियासत के रूप में जानी जाती थी। यहां की विशिष्टता यह थी कि रामपुर की अपनी सेना, रेलवे, बिजलीघर और अदालतें थीं, जो इसे अन्य रियासतों से अलग बनाती थीं। स्वतंत्रता के बाद अंतिम नवाब सैय्यद रजा खान ने 1949 में अपनी रियासत को भारत गणराज्य में विलय कर दिया। 1966 में उनके निधन के बाद उनके पुत्र जुल्फिकार अली खान, जिन्हें मिकी मियां के नाम से जाना जाता था, ने परिवार की बागडोर संभाली। उन्होंने राजनीति में सक्रिय रहते हुए कांग्रेस पार्टी से लगातार पांच बार लोकसभा चुनाव जीता और रामपुर को राष्ट्रीय राजनीति में पहचान दिलाई। उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी नूरबानो बेगम ने भी दो बार सांसद के रूप में रामपुर का प्रतिनिधित्व किया। रामपुर का यह शाही परिवार न केवल राजनीतिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी समृद्ध रहा है। मेहरुन्निसा बेगम इसी वंश की ऐसी सदस्य थीं जिन्होंने देश की सीमाओं से बाहर जाकर भारतीय भाषा और संस्कृति को नई पहचान दी। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि शाही वंशज केवल नाम से ही नहीं बल्कि कर्म से भी अपनी विरासत को जीवित रखते हैं। अमेरिका में रहते हुए भी वे भारतीय संस्कृति से गहरे जुड़ी रहीं और अपनी मातृभूमि की यादों को सहेज कर रखा। उनके निधन के साथ रामपुर की शाही परंपरा का एक और उज्ज्वल अध्याय समाप्त हो गया, लेकिन उनकी स्मृतियां आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनकर रहेंगी।




