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Bihar News : प्रशांत किशोर ने तेजस्वी को दिया चैलेंज, राघोपुर से चुनाव नहीं लड़ेंगे, उम्मीदवारों की जीत पर करेंगे फोकस

Bihar news in hindi : पीके ने कहा – मैं खुद चुनाव नहीं लड़ूंगा, बल्कि सभी उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने का काम करूंगा, राघोपुर में सियासी संदेश जारी

Prashant Kishor speaking at a political event in Raghopur | Bihar News

जन सुराज के संस्थापक और सियासी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने राघोपुर में तेजस्वी यादव को चुनौती देते हुए कहा था कि हिम्मत है तो यहां से चुनाव लड़कर दिखाएं। उन्होंने 11 अक्टूबर को कहा कि राघोपुर तेजस्वी यादव का पारिवारिक गढ़ है और यदि वे किसी अन्य सीट से चुनाव लड़ते हैं, तो यह हार स्वीकार करने के बराबर होगा। हालांकि, अब प्रशांत किशोर ने स्पष्ट किया है कि वे खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने 15 अक्टूबर को कहा, “सभी पार्टी सदस्यों ने फैसला कर लिया है। मैं सभी उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करूंगा और पहले से चल रहे कामों को जारी रखूंगा।”

NDA और सत्तारूढ़ गठबंधन पर टिप्पणी

प्रशांत किशोर ने बिहार में NDA और महागठबंधन की स्थिति पर भी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि जनता पहले से जानती है कि दोनों गठबंधन केवल सत्ता और संसाधनों के लिए लड़ रहे हैं। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि सम्राट चौधरी के खिलाफ तारापुर में एक जाने-माने डॉक्टर चुनाव लड़ रहे हैं और वहां उन्हें घेरने की तैयारी है। उनका यह बयान बिहार की राजनीति में सत्ता और प्रभाव के संघर्ष को दर्शाता है।

राघोपुर का राजनीतिक महत्व और सामाजिक समीकरण

राघोपुर विधानसभा सीट वैशाली जिले में स्थित है और पटना से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। यह क्षेत्र यादव-मुस्लिम-दलित वोट बैंक के लिए जाना जाता है। 2020 में तेजस्वी यादव ने यहां से 48 हजार से अधिक वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी। राघोपुर को लालू परिवार का गढ़ माना जाता है, जहां राजद के शीर्ष नेता लगातार चुनाव जीत चुके हैं। सीट का सामाजिक समीकरण यादव मतदाता 30%, भूमिहार और पासवान वोटर प्रमुख हैं। पिछले आठ चुनावों में से सात बार राजद ने यहां जीत दर्ज की है। प्रशांत किशोर की रणनीति के अनुसार, इस क्षेत्र से चुनाव प्रचार शुरू कर राजनीतिक संदेश देना उनका उद्देश्य है कि बदलाव की लड़ाई अब सत्ता के गढ़ में भी लड़ी जाएगी।

कुल मिलाकर, प्रशांत किशोर ने राघोपुर से तेजस्वी यादव को चुनौती देने के बावजूद चुनाव न लड़ने का फैसला लिया है और इस बार उनका फोकस उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करना और बिहार की सत्ता की राजनीति में बदलाव का संदेश देने पर है। यह रणनीति दर्शाती है कि पीके बिहार की राजनीति में सक्रिय रहेंगे, लेकिन सीधे चुनावी मैदान में उतरने की बजाय संगठनात्मक और प्रचार रणनीति पर केंद्रित रहेंगे।

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