‘राघोपुर से सियासी जंग का आगाज’
बिहार की सियासत में शनिवार का दिन बेहद अहम रहा, जब जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर (PK) ने राघोपुर से अपने चुनावी अभियान की शुरुआत की। राघोपुर, जो तेजस्वी यादव और लालू परिवार का पारंपरिक गढ़ माना जाता है, अब पीके के राजनीतिक मिशन का केंद्र बन गया है। पटना से रवाना होते हुए पीके ने तीखा बयान देते हुए कहा कि अगर वह राघोपुर से चुनाव लड़ते हैं तो यह इलाका “अमेठी” की तरह चर्चा में रहेगा और तेजस्वी यादव को राहुल गांधी की तरह दो सीटों पर उतरना पड़ सकता है। प्रशांत किशोर ने कहा कि वह राघोपुर के लोगों से मिलने जा रहे हैं ताकि यह समझ सकें कि अगर उन्हें गरीबी और पिछड़ेपन से मुक्ति चाहिए, तो किसे उनका प्रतिनिधि बनना चाहिए। राघोपुर पहुंचने पर पीके का जोरदार स्वागत हुआ, जहां लोगों ने अपनी स्थानीय समस्याएं उनके सामने रखीं-गांवों में विकास की कमी, बेरोजगारी, खराब सड़कों और जनप्रतिनिधियों की अनुपस्थिति जैसे मुद्दे प्रमुख रहे। इस पर पीके ने दो टूक कहा, “हम सब करेंगे, लेकिन आप लोग फिर जाति के नाम पर वोट मत दीजिएगा। आपने जिनको चुना, वे आते भी नहीं।” उनके इस बयान ने साफ कर दिया कि जनसुराज की राजनीति जातिवाद के खिलाफ और विकास के एजेंडे पर केंद्रित होगी।
‘लालू परिवार के गढ़ में जनसुराज की चुनौती’
राघोपुर विधानसभा क्षेत्र वैशाली जिले में पड़ता है और पटना से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह क्षेत्र यादव-मुस्लिम-दलित समीकरण के कारण हमेशा राजद का मजबूत किला माना गया है। 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने यहां से 48,000 से अधिक वोटों से जीत दर्ज की थी और राजद को 54% वोट शेयर मिला था। इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में जब प्रशांत किशोर ने राघोपुर से अपनी सियासी यात्रा शुरू करने का फैसला किया, तो यह एक प्रतीकात्मक संदेश था कि वे अब सत्ता के गढ़ में परिवर्तन की लड़ाई लड़ने उतरे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि पीके का यह कदम लालू परिवार के परंपरागत वर्चस्व को सीधी चुनौती है। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि राघोपुर जैसे क्षेत्र से शुरुआत करना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह बिहार की राजनीति की दिशा तय करता है। अगर यहां बदलाव की लहर उठी, तो वह पूरे राज्य में असर दिखाएगी।
राघोपुर का राजनीतिक इतिहास भी इसे खास बनाता है। अब तक हुए 19 चुनावों में से 7 बार राजद ने जीत दर्ज की है। इससे पहले कांग्रेस, जनता दल, लोकदल, जनसंघ जैसी पार्टियां भी यहां से अपनी किस्मत आजमा चुकी हैं, लेकिन 1969 के बाद कांग्रेस यहां से जीत नहीं सकी। भाजपा तो अब तक इस सीट पर खाता भी नहीं खोल पाई है। लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और अब तेजस्वी यादव-इन तीनों ने राघोपुर को अपनी राजनीतिक पहचान बनाया है। अब पीके उसी मैदान में उतरने का मन बना चुके हैं, जिससे यह मुकाबला सिर्फ चुनावी नहीं, बल्कि विचारों की लड़ाई भी बनता जा रहा है। उन्होंने साफ किया कि चाहे वे खुद मैदान में उतरें या किसी सहयोगी को टिकट दें, राघोपुर से जनसुराज का अभियान अब रुकने वाला नहीं है।
‘जनसुराज की दूसरी लिस्ट और पीके की रणनीति’
प्रशांत किशोर ने जनसुराज आंदोलन की शुरुआत 2021 में की थी और अब यह पूर्ण राजनीतिक पार्टी के रूप में उभर चुकी है। 9 अक्टूबर को जनसुराज ने अपनी पहली उम्मीदवार सूची जारी की थी, जिसमें डॉक्टर, वकील, शिक्षक, कलाकार और किन्नर तक को उम्मीदवार बनाया गया था। इस बार उम्मीद है कि दूसरी लिस्ट में करीब 100 सीटों पर प्रत्याशियों के नामों की घोषणा होगी। पार्टी ने यह भी सुनिश्चित किया है कि 95% उम्मीदवार वही लोग हों जो शुरुआत से इस आंदोलन से जुड़े रहे हैं। इससे पीके का मकसद साफ है-जनता की भागीदारी और ईमानदारी को प्राथमिकता देना।
राघोपुर से बार-बार की यात्राएं यह संकेत दे रही हैं कि पीके खुद भी इस सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। उन्होंने पहले कहा था कि वे अपनी जन्मभूमि करगहर या कर्मभूमि राघोपुर से चुनाव लड़ने पर विचार कर रहे हैं। करगहर से जनसुराज ने पहले ही रितेश रंजन पांडेय को उम्मीदवार घोषित किया है, जिससे यह संभावना और मजबूत हो जाती है कि पीके राघोपुर से ताल ठोकेंगे।
शनिवार को उनके कार्यक्रमों की लंबी श्रृंखला रही-दोपहर 1 बजे हिमतपुर दियारा से शुरुआत, फिर रुस्तमपुर, मोहनपुर, फतेहपुर, राघोपुर ब्लॉक तक उनका काफिला पहुंचा, जहां भारी जनसमर्थन देखने को मिला। शाम को जुड़ावनपुर हाई स्कूल में उन्होंने दिन का अंतिम संबोधन किया और साफ कहा कि “अब बिहार में राजनीति विचारों से चलेगी, जाति से नहीं।”
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, अगर प्रशांत किशोर राघोपुर से चुनाव लड़ते हैं, तो यह मुकाबला बिहार की सबसे हाई-वोल्टेज सीट बन जाएगा। एक तरफ तेजस्वी यादव का पारंपरिक गढ़ और दूसरी ओर जनसुराज के संस्थापक का नया प्रयोग-यह मुकाबला न सिर्फ सत्ता परिवर्तन का संकेत देगा बल्कि बिहार की राजनीति की नई दिशा भी तय करेगा। प्रशांत किशोर का संदेश साफ है- “सत्ता के गढ़ में अब बदलाव की लड़ाई शुरू हो चुकी है, और यह लड़ाई जनता के लिए है।”