जन सुराज के संयोजक प्रशांत किशोर शनिवार को सुपौल पहुंचे, जहां उन्होंने मीडिया से बातचीत के दौरान बिहार की राजनीति, चुनावी रणनीति और विकास की दिशा पर खुलकर बात की। राहुल गांधी के हालिया बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि “वोट चोरी का आरोप बेबुनियाद है और इसे बार-बार दोहराना लोकतंत्र की भावना के विपरीत है।” प्रशांत किशोर ने कहा कि लोकतंत्र में जनता के फैसले को सर्वोपरि मानना चाहिए, और हार के बाद आत्ममंथन की बजाय आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू करना राजनीति के लिए सही संकेत नहीं है। उन्होंने कहा कि जो भी नेता जनता से वोट मांगता है, उसे उनके फैसले को पूरी गरिमा के साथ स्वीकार करना चाहिए। हर बार ईवीएम या चुनाव प्रक्रिया पर संदेह जताने से न केवल जनता का भरोसा कमजोर होता है, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख पर भी सवाल उठता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि आज देश में नेताओं के बीच मुद्दों पर गंभीर बहस की बजाय राजनीतिक बयानबाजी ज्यादा हो रही है, जिससे असली समस्याएं पीछे छूट गई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राजद के चुनावी गीत पर की गई टिप्पणी को लेकर उन्होंने कहा कि “देश के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति को ऐसे छोटे राजनीतिक मुद्दों से ऊपर उठकर बात करनी चाहिए। जब प्रधानमंत्री खुद गीत या नारों पर प्रतिक्रिया देने लगें, तो इससे यह साफ झलकता है कि राजनीतिक विमर्श की दिशा बदल चुकी है। जनता मुद्दों पर चर्चा चाहती है, गानों या नारों पर नहीं।”
बिहार के विकास में उद्योग, शिक्षा और स्वास्थ्य प्रमुख चुनौती: युवाओं का पलायन चिंता का विषय
प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार की असली समस्या राजनीति नहीं बल्कि विकास से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि राज्य में औद्योगिक ढांचे की कमी और शिक्षा व्यवस्था की बदहाली ने युवाओं को पलायन के लिए मजबूर कर दिया है। “बिहार के लाखों युवा आज दिल्ली, पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र में काम कर रहे हैं क्योंकि अपने राज्य में रोजगार का कोई अवसर नहीं है। जिस राज्य में कारखाने बंद हों और नए उद्योग न लगें, वहां बेरोजगारी का बढ़ना स्वाभाविक है,” उन्होंने कहा। किशोर ने शिक्षा व्यवस्था की स्थिति पर भी सवाल उठाए और कहा कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक और संसाधनों की भारी कमी है। शिक्षा के बिना कोई समाज आगे नहीं बढ़ सकता और जब तक स्कूलों में गुणवत्ता नहीं आएगी, तब तक राज्य का भविष्य उज्जवल नहीं हो सकता। स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर उन्होंने कहा कि अस्पतालों में डॉक्टरों और दवाओं की कमी से आम जनता परेशान है। “आज भी कई जिलों में मरीजों को छोटे-छोटे इलाज के लिए पटना या बाहर जाना पड़ता है, जो विकास के दावों पर सवाल खड़ा करता है,” उन्होंने कहा। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में सड़क और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं में सुधार हुआ है, लेकिन जनसुविधाओं की गुणवत्ता अभी भी काफी पीछे है। प्रशांत किशोर ने कहा कि विकास केवल आंकड़ों में नहीं बल्कि आम लोगों के जीवन में दिखाई देना चाहिए।
जनता की भागीदारी से तय होगा नया विकास मॉडल: जन सुराज बनेगा बिहार की नई राजनीतिक दिशा
प्रशांत किशोर ने अपने जन सुराज अभियान के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए कहा कि बिहार को एक नए विकास मॉडल की जरूरत है, जो जनता की जरूरतों और आकांक्षाओं पर आधारित हो। उन्होंने कहा कि “जब तक जनता खुद राजनीति में भाग नहीं लेगी, तब तक सच्चा बदलाव नहीं आएगा। जन सुराज का मकसद सिर्फ राजनीति करना नहीं बल्कि एक ऐसी शासन प्रणाली तैयार करना है जिसमें हर नागरिक की भूमिका हो।” किशोर ने बताया कि उनकी टीम बिहार के हर जिले में जाकर लोगों से संवाद कर रही है ताकि एक ऐसा खाका तैयार किया जा सके जो बिहार के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ढांचे को मजबूत करे। उन्होंने कहा कि आने वाले विधानसभा चुनावों में जनता पारंपरिक जाति और धर्म आधारित राजनीति से हटकर विकास आधारित राजनीति को मौका देना चाहती है। “लोग अब ऐसे नेताओं को चुनना चाहते हैं जो उनके जीवन में बदलाव लाएं, न कि केवल नारे दें,” उन्होंने कहा। किशोर ने यह भी जोड़ा कि बिहार के पास क्षमता की कोई कमी नहीं है-यहां के युवा प्रतिभाशाली हैं, लेकिन उन्हें सही अवसर और दिशा की जरूरत है। उन्होंने जनता से अपील की कि वे अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति सजग रहें, ताकि राजनीति केवल नेताओं का मंच न रहकर लोगों की भागीदारी का माध्यम बन सके। प्रशांत किशोर का यह संदेश न केवल बिहार बल्कि पूरे देश की राजनीति के लिए एक नई दिशा का संकेत देता है-जहां विकास, जवाबदेही और जनता की भागीदारी ही लोकतंत्र की असली पहचान बने।




