समस्तीपुर में मोबाइल लाइट से राजनीति का संदेश और लालटेन पर तंज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 अक्तूबर को समस्तीपुर के कर्पूरी ग्राम और बेगूसराय के बरौनी/बेगूसराय सभास्थलों में आयोजित द्वि-रैली में एक प्रतीकात्मक कद्र में उपस्थित जनसमूह के मोबाइल की फ्लैशलाइट चालू करवाई और इसका इस्तेमाल राजनीतिक संदेश देने के लिए किया। प्रधानमंत्री ने सभास्थल पर मौजूद लोगों से कहा कि इतनी रोशनी में भी क्या लालटेन की जरूरत है, इस तरह विपक्ष के पुराने प्रतीकों और तौर-तरीकों पर कटाक्ष किया। समस्तीपुर में उन्होंने कर्पूरी ठाकुर को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि बिहार में सस्ती इंटरनेट और मोबाइल की व्यापक पहुंच ने नए अवसरों के द्वार खोले हैं, खासकर युवाओं के लिए कंटेंट क्रिएशन और रोज़गार के संदर्भ में। इस दौरान दर्शकों ने अपने मोबाइल की फ्लैशलाइट चालू कर एक विशाल रोशन समुच्चय बनाया, जिसे प्रधानमंत्री ने आधुनिकता व टेक्नोलॉजी की उपलब्धि के रूप में पेश किया और उसे विकास की प्रतीकात्मकता से जोड़कर विपक्ष पर तंज किया। कुछ मीडिया कवरेज में यह भी दिखा कि बेगूसराय में मंच पर प्रकाश की व्यवस्था नहीं थी और इसी का हवाला देते हुए केंद्रीय नेता गिरिराज सिंह ने व्यवस्थापकों से मंच पर शीघ्रता से लाइट लगाने का आग्रह किया। यह दृश्य राजनीतिक संवाद का हिस्सा बन गया, जिसमें तकनीकी सुलभता और चुनावी संदेश दोनों को जोड़ा गया।
विपक्ष पर कटु-आलोचना, ‘जंगलराज’ और विकास की पुनरावृत्ति का आह्वान
प्रधानमंत्री के संबोधन का बड़ा मकसद विपक्षी महागठबंधन पर तीखा हमला और अपने शासनकाल के विकास कार्यों का रेकॉर्ड प्रस्तुत करना रहा। भाषण में मोदी ने बार-बार ‘जंगलराज’ का उल्लेख कर उस दौर की कथित असुरक्षा, लूट-खसोट और कानून व्यवस्था के ढाए हालातों का जिक्र किया और उसे विपक्ष से जोड़कर प्रस्तुत किया। उन्होंने दावा किया कि एनडीए के शासन में सुशासन आया और अब इसे समृद्धि में बदलने का समय है। मोदी ने विपक्ष पर यह भी आरोप लगाया कि बड़े-छोटे नेताओं के बीच गुटबंदी और आपसी सहमति की कमी है – उन्हें उन्होंने ‘अटक, लटक, झटक, पटक’ आदि शब्दों से वर्णित किया – और कहा कि ऐसे गठबंधन की प्राथमिकता स्वार्थ है। इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने आर्थिक और बुनियादी ढाँचे के प्रोजेक्टों का हवाला देते हुए कहा कि बरौनी रिफाइनरी, गंगा पार पुलों और बिजली आपूर्ति जैसे कामों से स्थानीय उद्योगों और रोजगार को बल मिला है। भाषण में यह भी रेखांकित किया गया कि सस्ता डेटा और मोबाइल ने आम लोगों के जीवन में बदलाव लाया है और इसलिए परंपरागत ‘लालटेन’ प्रतीकों को पीछे छोड़ा जा सकता है – यही तर्क उन्होंने सभा में मोबाइल लाइट का उपयोग कर दिखाया। उनके संबोधन का राजनीतिक केंद्र बिंदु था-नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए को फिर से भारी जनादेश दिलाना ताकि विकास की गति तेज हो सके; साथ ही कार्यकर्ताओं को बूथ स्तर पर संगठित होकर काम करने का आवाहन भी किया गया।
समुद्री जनसमूह, आयोजकीय चुनौतियां और चुनावी रणनीति का असर
समस्तीपुर व बेगूसराय में बड़ी संख्या में जुटी भीड़, मंच पर मौजूद NDA नेताओं की एकजुटता और सांस्कृतिक झलक-जैसे छठ व्रतियों को सूप बांटना या मखाने की माला-ने रैलियों को दृश्यात्मक और भावनात्मक दोनों दृष्टियों से समृद्ध किया। परंतु आयोजन में कुछ व्यवस्थापकीय मुद्दे भी सामने आए; बेगूसराय में मंच पर प्रकाश व्यवस्था न होने की बात मीडिया द्वारा उठाई गई, जिससे कार्यक्रम की कुछ झलकियों में असुविधा झलकती रही। सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम, चार-स्तरीय सुरक्षा कवरेज और एसपीजी के साथ स्थानीय पुलिस की समन्वित व्यवस्था का जिक्र किया गया, जबकि आयोजक बड़ी संख्या में दर्शकों के बैठने एवं पॉलिसिंग व्यवस्था का दायित्व निभा रहे थे। चुनावी रणनीति के लिहाज़ से प्रधानमंत्री का यह दोनों जिलों का दौरा समयनिष्ठ और प्रतीकात्मक था-समय पर दोनों रैलियों के माध्यम से बुनियादी विषयों (देश में डिजिटल पहुँच, अर्थव्यवस्था, और कानून-व्यवस्था) को उठाना और विपक्ष के दांव-पेंच पर सवाल खड़े करना। साथ ही स्थानीय नेताओं और उम्मीदवारों को मंच पर खड़ा कर उन्हें एक छवि के रूप में पेश करना भी रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण रहा, ताकि बूथ स्तर तक एकजुटता और प्रत्याशियों के प्रति समर्थन दिखाई दे। कुल मिलाकर, कार्यक्रम ने चुनावी संदेश, स्थानीय मुद्दों और राष्ट्रीय विमर्श को जोड़ते हुए समर्थन जुटाने की कोशिश की; अब यह देखना बाकी है कि ये खालीशुदा वादे और प्रतीकात्मक शोज़ मैदान पर वोटों में कितनी साँझ पाते हैं।




