मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी विधानसभा क्षेत्र में आज एनडीए की एक विशाल जनसभा आयोजित की जा रही है, जो बिहार की राजनीतिक सरगर्मियों का केंद्र बनी हुई है। यह सभा केरमा गांव स्थित अंबेडकर खेल मैदान में आयोजित होगी, जहां एनडीए प्रत्याशी और बिहार सरकार के पंचायती राज मंत्री केदार प्रसाद गुप्ता के पक्ष में वोट की अपील की जाएगी। इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी मुख्य वक्ता के रूप में शामिल होंगे। उनके साथ ही लोकसभा सांसद राजीव प्रताप रूड़ी और राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर भी मंच साझा करेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह रैली एनडीए के लिए क्षेत्र में अपनी एकजुटता और ताकत दिखाने का अवसर है, जहां एनडीए के तीनों प्रमुख घटक दल-भाजपा, जदयू और हम-एक मंच पर आ रहे हैं। जनसभा में पारू विधानसभा के एनडीए प्रत्याशी मदन चौधरी और कांटी के जदयू प्रत्याशी अजीत कुमार भी मौजूद रहेंगे, जिससे क्षेत्रीय स्तर पर गठबंधन की एकजुटता का प्रदर्शन स्पष्ट रूप से झलकेगा। केदार प्रसाद गुप्ता ने इस सभा से पहले कहा कि एनडीए की सरकार ने बिहार के विकास को नई दिशा दी है। केंद्र और राज्य सरकार मिलकर सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि के क्षेत्र में निरंतर सुधार कर रही हैं। उनका कहना है कि इस रैली के माध्यम से जनता को सरकार की उपलब्धियों से अवगत कराया जाएगा और भविष्य की विकास योजनाओं पर चर्चा की जाएगी। प्रशासनिक स्तर पर सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए हैं और आयोजन समिति ने अनुमान लगाया है कि हजारों की संख्या में लोग इस रैली में हिस्सा लेंगे।
एनडीए बनाम महागठबंधन: कुढ़नी में त्रिकोणीय मुकाबले की तैयारी
कुढ़नी विधानसभा सीट इस समय बिहार की राजनीति में बेहद चर्चित हो चुकी है। यहां एनडीए के केदार प्रसाद गुप्ता का मुकाबला राजद के बबलू कुशवाहा और जन सुराज पार्टी के मोहम्मद अली इरफान से है। यह सीट हमेशा से ही करीबी मुकाबले के लिए जानी जाती रही है और इस बार भी परिस्थितियां कुछ वैसी ही हैं। एनडीए की ओर से यह अब तक की सबसे बड़ी जनसभा बताई जा रही है, जिसमें स्थानीय कार्यकर्ताओं और समर्थकों का भारी जमावड़ा होने की उम्मीद है। मैदान में विशाल पंडाल, मंच और पार्किंग की व्यवस्था पूरी कर ली गई है। स्थानीय प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं, ताकि किसी भी तरह की अव्यवस्था न हो। मंच पर नेताओं, पत्रकारों और विशिष्ट अतिथियों के लिए अलग-अलग बैठक व्यवस्था की गई है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यह सभा न केवल केदार प्रसाद गुप्ता की लोकप्रियता को बढ़ावा देगी, बल्कि एनडीए के लिए एक मनोवैज्ञानिक बढ़त भी साबित हो सकती है। दूसरी ओर महागठबंधन के उम्मीदवार बबलू कुशवाहा और जन सुराज के मोहम्मद अली इरफान भी अपनी पकड़ मजबूत करने में जुटे हुए हैं। दोनों उम्मीदवार लगातार जनता के बीच जाकर प्रचार कर रहे हैं और एनडीए सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं। राजनीतिक दृष्टि से यह चुनाव एक तरह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों पर जनमत की परीक्षा भी माना जा रहा है।
केदार गुप्ता का राजनीतिक सफर और 2020 की हार का पुनर्स्मरण
केदार प्रसाद गुप्ता का राजनीतिक सफर बिहार के सशक्त नेताओं में गिना जाता है। वे वैश्य समाज से आते हैं और मुजफ्फरपुर जिले के ही मूल निवासी हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने तमिलनाडु के विनायका मिशन यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है और 2002 में देवघर स्थित रतभरा हिंदी विद्यापीठ से बीए ऑनर्स की डिग्री हासिल की। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत भाजपा से की और पार्टी में विभिन्न पदों पर काम करते हुए खुद को एक मेहनती और समर्पित नेता के रूप में स्थापित किया। 2020 के विधानसभा चुनाव में वे बेहद कम अंतर से हार गए थे। उस समय राजद के अनिल सहनी ने उन्हें केवल 712 वोटों के मामूली अंतर से मात दी थी। हालांकि 2022 में जब एलटीसी घोटाले में अनिल सहनी की सदस्यता समाप्त हुई और उपचुनाव हुए, तो केदार प्रसाद गुप्ता ने शानदार वापसी करते हुए जदयू उम्मीदवार को 3632 वोटों से हराया। यह जीत न केवल उनके लिए बल्कि पूरे एनडीए के लिए आत्मविश्वास का प्रतीक बनी। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को 39.86 प्रतिशत और राजद को 40.23 प्रतिशत वोट मिले थे, यानी महज 0.37 प्रतिशत का अंतर रहा। यही कारण है कि इस बार कुढ़नी की सीट पर हर दल अपनी पूरी ताकत झोंक रहा है। राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि केदार प्रसाद गुप्ता की पकड़ अति पिछड़ा वर्ग और व्यापारी समाज में मजबूत है, जो उन्हें बढ़त दिला सकती है। वहीं, एनडीए का नेतृत्व इस बार विकास के मुद्दे पर जनता के बीच जाने की रणनीति अपना रहा है, जिसमें केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की योजनाओं को प्रमुखता से रखा जाएगा। यह रैली एनडीए के लिए न केवल चुनावी शंखनाद साबित होगी, बल्कि आने वाले राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित कर सकती है।




