बिहार विधानसभा चुनाव का तापमान बढ़ने के साथ बक्सर जिले की ब्रह्मपुर सीट एक बार फिर चर्चा में है। दो दशक से RJD के कब्जे में रही इस सीट पर इस बार भी सियासी लड़ाई दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गई है। मैदान में एक तरफ हैं मौजूदा विधायक और लालू प्रसाद यादव के करीबी शंभू नाथ यादव, वहीं दूसरी तरफ हैं पूर्व MLC और LJP (रामविलास) के उम्मीदवार हुलास पांडे, जिनकी छवि कभी विवादों में रही थी लेकिन अब वे खुद को “जनता का नेता” बताकर राजनीति में नई शुरुआत करने की कोशिश कर रहे हैं। ब्रह्मपुर सीट में तीन ब्लॉक – ब्रह्मपुर, चक्की और सिमरी शामिल हैं, जिनमें कुल मिलाकर करीब 30% यादव-मुस्लिम वोटर निर्णायक माने जाते हैं। यही समीकरण वर्षों से RJD के पक्ष में काम करता रहा है। इस क्षेत्र में यादव समुदाय करीब 26% और मुस्लिम करीब 4% वोटर हैं, जो लालू यादव के पारंपरिक वोट बैंक के रूप में देखे जाते हैं। 2020 के चुनाव में शंभू नाथ यादव ने हुलास पांडे को 51,141 वोटों के बड़े अंतर से हराया था, और इस बार फिर वही मुकाबला दोहराया जा रहा है। हालांकि, जनता में मौजूदा विधायक के खिलाफ असंतोष दिखाई दे रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि विधायक अपने क्षेत्र में शायद ही दिखाई देते हैं। कई ग्रामीणों ने बताया कि सड़कों की हालत खराब है, बाढ़ के समय कोई राहत नहीं मिलती और जनसुनवाई की व्यवस्था नाम मात्र की है। बावजूद इसके, जातीय समीकरण अब भी RJD के पक्ष में झुकते नजर आ रहे हैं, जिससे विपक्षी दलों के लिए चुनौती बरकरार है।
जनता की नाराजगी, लेकिन समीकरण में हुलास पांडे को नहीं दिखता स्पष्ट लाभ
ब्रह्मपुर क्षेत्र के कई गांवों में लोगों की राय बंटी हुई दिखती है। नौरंग राय का टोला जैसे गांवों में भूमिहार और ब्राह्मण समुदाय का प्रभाव है, जहां NDA उम्मीदवार हुलास पांडे को समर्थन मिलने की उम्मीद है। यहां के निवासी राजनाथ राय कहते हैं कि वे किसी उम्मीदवार के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन वोट उसी को देंगे जो विकास की बात करेगा। उनका कहना है कि विधायक शंभू नाथ यादव कभी क्षेत्र में नजर नहीं आए और समस्याओं का समाधान नहीं हुआ। इसी तरह गांव के युवा मतदाता अनिल राय भी कहते हैं कि बाहुबली की छवि बनाना राजनीतिक साजिश है, हुलास पांडे जनता के बीच हैं और उनकी छवि सुधारने की जरूरत है। दूसरी ओर, चक्की गांव – जो मौजूदा विधायक शंभू नाथ यादव का इलाका है – वहां के लोगों का झुकाव अब भी RJD की ओर है। स्थानीय दुकानदार प्रेमजी का कहना है कि लालू यादव के समय में किसी काम के लिए रिश्वत नहीं देनी पड़ती थी और आज भी पार्टी के प्रति भरोसा कायम है। लेकिन समीकरण की असली तस्वीर तब बदलती है जब मुस्लिम मतदाताओं की राय सामने आती है। रामपुर मटिहा गांव के गुलाम हसन जैसे मतदाता कहते हैं कि उन्होंने विधायक को कभी देखा तक नहीं, बस जाति और धर्म के आधार पर वोट पड़ता है। वे मानते हैं कि इस बार जनता सोच-समझकर वोट देगी। वहीं, स्थानीय राजनीतिक विश्लेषक जीतेंद्र तिवारी का मानना है कि शंभू नाथ यादव से नाराजगी के बावजूद हुलास पांडे को इस असंतोष का सीधा फायदा नहीं मिलेगा। 2020 में दोनों के बीच वोट का अंतर 50 हजार से ज्यादा था और NDA का एकजुट होना इस अंतर को कम कर सकता है, लेकिन पूरी तरह पाटना मुश्किल दिखता है।
2000 के बाद से RJD का दबदबा कायम, क्या NDA बदलेगा समीकरण?
2000 के बाद से ब्रह्मपुर सीट पर RJD का दबदबा लगभग अटूट रहा है। सिर्फ 2010 में बीजेपी उम्मीदवार दिलमरनी देवी ने यहां जीत दर्ज की थी, लेकिन 2015 में लालू-नीतीश गठबंधन बनने के बाद RJD ने फिर से वापसी की और शंभू नाथ यादव ने सीट हासिल की। 2020 में उन्होंने और बड़ी जीत दर्ज करते हुए अपने अंतर को 50 हजार तक पहुंचा दिया। पिछली बार चिराग पासवान की पार्टी LJP और उपेंद्र कुशवाहा की RLSP दोनों अलग-अलग चुनाव लड़ी थीं, जिससे NDA के वोट बंट गए। इस बार दोनों दल NDA के साथ हैं, जिससे हुलास पांडे को फायदा मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। हुलास पांडे का कहना है कि “पिछली बार NDA बिखरा हुआ था, अब सभी वोट एकजुट हैं, इसलिए जीत हमारी तय है।” वहीं, RJD के जिलाध्यक्ष शेषनाथ यादव का दावा है कि “मल्लाह और बिंद समुदाय के करीब 20 हजार वोट RJD के पक्ष में आ चुके हैं और इस बार जीत का अंतर 65 हजार तक जाएगा।” विशेषज्ञों का मानना है कि BSP उम्मीदवार महावीर यादव कुछ हजार वोट खींच सकते हैं, लेकिन उनका असर सीमित रहेगा। दलित और मल्लाह वोट NDA के साथ जा सकते हैं, लेकिन निर्णायक भूमिका यादव-मुस्लिम गठजोड़ की ही रहेगी। वरिष्ठ पत्रकार विष्णु नारायण कहते हैं कि “अगर NDA के सभी वोट एकजुट हो जाएं, तब भी हुलास पांडे को जीत के लिए कम से कम 20 हजार अतिरिक्त वोट चाहिए होंगे।” कुल मिलाकर, जनता के असंतोष और स्थानीय मुद्दों के बावजूद ब्रह्मपुर की लड़ाई अब भी जातीय संतुलन पर टिकी है। हुलास पांडे की चुनौती मजबूत जरूर है, लेकिन RJD का गढ़ तोड़ना अभी भी आसान नहीं दिखता। आने वाले दिनों में प्रचार अभियान और उम्मीदवारों की रणनीति तय करेगी कि क्या ब्रह्मपुर की राजनीति में कोई बड़ा उलटफेर देखने को मिलेगा या एक बार फिर RJD अपनी परंपरागत जीत को बरकरार रखेगी।




