प्रधानमंत्री ने छपरा और मुजफ्फरपुर में आयोजित जनसभाओं में विरोधी दलों के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया और सीधे शब्दों में कहा कि कांग्रेस और राजद की राजनीति बिहार तथा बिहारियों का अपमान कर रही है। अपने संबोधन में उन्होंने यह बताने की कोशिश की कि कुछ राज्यों में विपक्षी नेताओं द्वारा की गई टिप्पणियाँ और व्यवहार बिहार के खिलाफ हैं और जिन लोगों ने राज्य व वहां के लोगों के बारे में अनुचित भाषा का प्रयोग किया, उन्हें चुनाव प्रचार में शामिल कर कांग्रेस ने राजनीतिक रणनीति के हिस्से के रूप में इस्तेमाल किया है। पीएम ने यह भी आरोप लगाया कि विपक्ष की रणनीति में एक-दूसरे को नुकसान पहुँचाने की चाल छिपी हुई है और कांग्रेस का उद्देश्य राजद को चुनाव में कमजोर करना है। अपने शब्दों में उन्होंने विपक्षी गठबंधन को असंगत और उद्देश्यहीन बताया और जोर देकर कहा कि ऐसे गठबंधन से राज्य का विकास नहीं हो सकता। उनका यह भी कहना था कि कुछ विरोधी बयान और प्रचार सामग्री समाज में नफरत और विभाजन को भड़काती है, जिससे सामाजिक शांति की स्थिति प्रभावित होती है। सभा में मौजूद लोगों को उद्धृत करते हुए प्रधानमंत्री ने बिहार की सांस्कृतिक और पारंपरिक भावनाओं का हवाला देते हुए कहा कि मज़बूत नेतृत्व के बिना ये मूल्यों की रक्षा संभव नहीं और इसलिए जनता को सूझ-बूझ से वोट देना चाहिए। इस हिस्से में उन्होंने अपने शासन के दौरान किये गए विकासात्मक कार्यों और योजनाओं का जिक्र कर जनता को यह भरोसा दिलाने का प्रयास किया कि सही विकल्प चुनने से ही स्थायी प्रगति संभव है।
घोषणापत्र, जंगलराज और सुरक्षा के मुद्दे – इतिहास को याद दिलाना
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में विपक्ष के घोषणापत्रों पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि उनकी घोषणाएँ असल में जनता के लिए वादों का सेट नहीं, बल्कि उन वायदों के पीछे छिपी संभावित वसूली और अनैतिक व्यवहार का संकेत हैं। उन्होंने पुराने दिनों के कानून-व्यवस्था के संकटों का हवाला देते हुए उन घटनाओं का स्मरण कराया जिनके दौरान हत्या, अपहरण और अपराधों की वृद्धि देखने को मिली थी – उदाहरण के तौर पर उन्होंने उन समयों के अपराध मामलों का उल्लेख किया जो लोगों की सुरक्षा और भरोसे को कमजोर कर गए थे। पीएम ने कहा कि जब शासन में कट्टर बल और अपराधियों का बोलबाला रहा, तब आम लोगों की सुरक्षा व सम्मान प्रभावित हुआ और यही कारण है कि इस बार का चुनाव बिहार के भविष्य के लिए निर्णायक है। अपने आग्रह में उन्होंने बताया कि बिहार का विकास तभी संभव है जब जमीन, बिजली, कनेक्टिविटी और कानून का शासन उपलब्ध हो – और उनका तर्क था कि जिन पार्टियों का इतिहास जमीन कब्ज़ा, भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन से जुड़ा है, वे विकास का मार्ग प्रशस्त नहीं कर सकतीं। सार्वजनिक परिवहन, कनेक्टिविटी और उद्योग स्थापना जैसे मुद्दों पर उन्होंने वर्तमान सरकार की उपलब्धियों का हवाला देकर यह साबित करने की कोशिश की कि सुशासन से ही उद्योग और रोजगार बढ़ेंगे और इसलिए वोटरों को सुशासन के पक्ष में खड़ा होना चाहिए। सभा में सुरक्षा के व्यापक इंतज़ामों और वहां उपस्थित जनसमूह की भारी संख्या ने भी रैली के व्यापक प्रभाव को रेखांकित किया।
छठ विवाद, सांस्कृतिक भावनाएँ और चुनावी संदेश
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण का एक बड़ा हिस्सा छठ पर्व और उससे जुड़ी परंपराओं के संरक्षण पर केन्द्रित रखा। उन्होंने उन टिप्पणियों का ज़िक्र किया जो हाल के दिनों में विपक्षी नेताओं द्वारा छठ पूजा और उससे जुड़ी संवेदनशीलता के संदर्भ में की गई थीं और यह तर्क दिया कि धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक परंपराओं का अनादर चुनाव के माध्यम से स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। इस संदर्भ में राहुल गांधी के हालिया बयान का हवाला भी रैली में मुद्दा बना, जिसे भाजपा के नेताओं ने छठ के प्रति असम्मान के रूप में प्रस्तुत किया और इसे वोटरों के भरोसे के खिलाफ बताया गया। पीएम ने कहा कि छठ जैसी लोकपरंपराओं का सम्मान पूरे समाज की एकता को दर्शाता है और इसे राजनीतीकरण करने से समाज में आक्रोश और भावनात्मक प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है। उन्होंने महिलाओं और माताओं की श्रद्धा को प्रमुखता देते हुए कहा कि इस तरह की संवेदनशीलताओं को भुनाना गलत और नैतिक रूप से अपमानजनक है। साथ ही मोदी ने विभिन्न सांस्कृतिक उत्पादों – जैसे स्थानीय कृषिजन्य उपज और क्षेत्रीय पहचान – का जिक्र कर यह संदेश दिया कि सरकार इन सांस्कृतिक व आर्थिक मूल्यों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए प्रयत्नशील है। अपने संबोधन के अंत में प्रधानमंत्री ने जनता से अपील की कि वे सुशासन, विकास और सांस्कृतिक सम्मान के लिए मतदान करें और चेतावनी दी कि पुराने और विवादित राजनीतिक विकल्पों के परिणाम से प्रदेश पर नकारात्मक असर पड़ेगा। सभा में नेताओं के बीच के गठजोड़, बयानबाज़ियाँ और चुनावी रणनीतियाँ स्पष्ट रूप से दिखाई दीं और रैली ने अगले चरण के चुनावी संघर्ष के संकेत दे दिए।




