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Navratri Day 5: मां स्कंदमाता की कथा और महत्व | Maa Skandamata Story

Navratri Day 5, Maa Skandamata ki Katha: नवरात्रि के पाँचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा होती है। आइए जानते हैं स्कंदमाता माता की कथा और महत्व।

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नवरात्रि (नौ रातों का त्योहार) हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है, जो देवी पार्वती या मां दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित है और भक्त इसे श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं। नवरात्रि का पाँचवा दिन देवी स्कंदमाता को समर्पित है। उन्हें उनके पुत्र, भगवान स्कंद (कार्तिकेय) के कारण स्कंदमाता कहा जाता है।

स्कंदमाता माता को मातृत्व और करुणा की देवी कहा जाता है। उनका रूप बहुत ही शांत और सुंदर है, और वे भक्तों को सुख, समृद्धि और भौतिक व आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करती हैं।

मां स्कंदमाता कथा (Maa Skandamata Vrat Katha)

पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता सती द्वारा अपना देह त्यागने के बाद, भगवान शिव ने स्वयं को सांसारिक बंधनों से दूर कर लिया था और एक तपस्वी के रूप में तपस्या करने चले गए थे। इसी दौरान, तारकासुर और सुरपद्मन नाम के दो राक्षसों ने देवताओं पर हमला कर दिया। उस समय, देवताओं की मदद करने के लिए कोई नहीं था। तारकासुर और सुरपद्मन नाम के दोनों राक्षसों को भगवान ब्रह्मा द्वारा ये वरदान प्राप्त था, कि उन्हें मारने के लिए भगवान शिव की संतान को ही आना होगा। उन राक्षसों ने हर किसी को परेशान करके रखा था। इन दोनों राक्षसों के अत्याचारों को देख, देवता गण भी चिंतित थे। तब सभी देवता गण भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें अपना दुख सुनाया। परंतु भगवान विष्णु ने उनकी कोई मदद नहीं की। भगवान विष्णु से मदद न मिलने पर, देवताओं ने नारद मुनि के पास जाने का सोचा। उन्होंने नारद मुन‍ि से कहा, कि यदि वो माता पार्वती से भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या करने को कहेंगे, तब शायद भगवान शिव उनसे व‍िवाह कर लें और उनके मिलन से महादेव की संतान जन्म ले, जो उन राक्षसों का वध कर सके। इसलिए नारद मुनि के कहे अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की और उनकी भक्ति से खुश होकर, भगवान शिव ने उनसे विवाह करने का निर्णय लिया। विवाह के पश्चात, माता पार्वती और भगवान शिव की ऊर्जा से एक बीज का जन्म हुआ। बीज के अत्यधिक गर्म होने के कारण, उसे अग्नि देव को सर्वाना नदी में सुरक्षित रखने के लिए सौंपा दिया गया। अग्निदेव भी उसकी गर्मी सह नहीं पाए, इसलिए उन्होंने उस बीज को गंगा को सौंप दिया, जो उसे आखिर में सर्वाना झील में ले गईं, जहां माता पार्वती पहले से ही पानी के रूप में मौजूद थीं और उस बीज को धारण करते ही, वो गर्भवती हो गईं। कुछ समय पश्चात, भगवान कार्तिकेय ने अपने छह मुखों के साथ जन्म लिया। भगवान कार्तिकेय के जन्म के बाद, उन्हें तारकासुर और सुरपद्मन का विनाश करने के लिए तैयार किया गया। सभी देवताओं ने मिलकर, उन्हें अलग-अलग तरीके का ज्ञान दिया और राक्षसों से लड़ने के लिए, उन्हें महत्वपूर्ण शस्त्र भी दिए। आखिर में भगवान कार्तिकेय ने सभी राक्षसों का वध कर दिया। इसी कारण मां दुर्गा को स्कंदमाता यानी कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है।

स्कंदमाता मां का मंत्र

चैत्र नवरात्रि‍ के पांचवें दिन आप मां स्कंदमाता के इस सिद्ध मंत्रों का जाप कर सकते हैं –

ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कन्दमातायै नम:

या

देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

स्कंदमाता स्तुति

करुणा का स्रोत, मातृत्व की मूर्ति।
भक्तों के दुख हरने वाली, मैं तेरा शरणागत।
सफलता, स्वास्थ्य और समृद्धि दायिनी।
स्कंदमाता, तेरी भक्ति से हृदय भरपूर॥

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मां स्कंदमाता पूजा विधि

  1. स्नान और पवित्रता: सबसे पहले स्नान करें और पवित्र वस्त्र धारण करें।
  2. मूर्ति स्थापना और पूजा: मां स्कंदमाता की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें और उनकी पूजा करें।
  3. पुष्प और अक्षत: मां स्कंदमाता को फूल और अक्षत अर्पित करें।
  4. दीप और धूप: दीप और धूप जलाएं और मां की आरती करें।
  5. मंत्र जाप: मां स्कंदमाता के मंत्र “ॐ देवी स्कंदमातायै नमः” का जाप करें।
  6. भोग: मां स्कंदमाता को भोग लगाएं और प्रसाद के रूप में वितरित करें।

मां स्कंदमाता की पूजा का महत्व

मां स्कंदमाता मातृत्व, करुणा और शक्ति की देवी हैं। उनकी पूजा से जीवन में समृद्धि, साहस और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।

मां स्कंदमाता पूजा के लाभ

  • साहस और शक्ति: मां स्कंदमाता की पूजा से मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है।
  • सफलता और समृद्धि: उनकी आराधना से जीवन में सफलता और संपन्नता आती है।
  • शांति और स्थिरता: माता की पूजा से जीवन में स्थिरता और शांति आती है।
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