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Govardhan Puja 2025 : गोवर्धन की सम्पूर्ण पूजन विधि, शुभ मुहूर्त, कथा, पूजा मंत्र और सामग्री

Govardhan Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Puja Time, Samagri, Mantra in Hindi: गोवर्धन पूजा पर श्रीकृष्ण, गाय और बैलों का पूजा किया जाता है। यहां जानिए गोवर्धन पूजा की विधि, मंत्र और पूजन सामग्री

गोवर्धन पूजा 2025: पूजा विधि, कथा, शुभ मुहूर्त व 56 भोग की जानकारी | Govardhan Puja 2025 Puja Vidhi, Katha, Muhurat & 56 Bhog

Govardhan Puja Vidhi, Shubh Muhurat, Puja Time, Samagri, Mantra in Hindi: 22 अक्टूबर, 2025 को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जा रहा है। पंचांग के अनुसार, यह पर्व हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी कहते हैं और यह त्योहार भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित माना जाता है।

खासतौर पर गोवर्धन पूजा मथुरा, वृंदावन, गोकुल और बरसाना में धूमधाम के साथ मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ गाय और बैलों का भी पूजा किया जाता है। इसके साथ ही गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से गोवर्धन भगवान बनाकर उनकी पूजा और परिक्रमा की जाती है। ऐसे में आइए जानते हैं गोवर्धन पूजा की विधि, मंत्र और पूजन सामग्री।

गोवर्धन पूजा की सही तिथि (Govardhan Puja 2025 Date)

इस साल गोवर्धन पूजा 22 अक्टूबर को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार, कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 21 नवंबर की शाम 5 बजकर 54 मिनट पर शुरू हो रही है और यह 22 अक्टूबर की रात 8 बजकर 16 मिनट पर खत्म होगी। इस तरह से गोवर्धन पूजा का सही दिन 22 नवंबर ही माना गया है।

वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 21 अक्टूबर को शाम 05 बजकर 54 मिनट पर शुरू हो रही है। इस तिथि का समापन अगले दिन अगल दिन 22 अक्टूबर को रात 08 बजकर 16 मिनट पर हो रहा है। ऐसे में गोवर्धन पूजा का पर्व 22 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

पूजा का शुभ मुहूर्त (Govardhan Puja 2025 Shubh Muhurt)

  • ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04 बजकर 45 मिनट से 05 बजकर 35 मिनट तक
  • विजय मुहूर्त- दोपहर 01 बजकर 58 मिनट से लेकर 02 बजकर 44 मिनट तक
  • गोधूलि मुहूर्त- शाम 05 बजकर 44 मिनट से 06 बजकर 10 मिनट तक
  • अमृत काल- दोपहर 04 बजे से 05 बजकर 48 मिनट तक

गोवर्धन पूजा के दिन लगाएं ये भोग (Govardhan Puja 2025 Bhog)

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण को तरह-तरह के अन्न और सब्जियों से बने पकवान का भोग लगाया जाता है।

इस भोग में चावल, खीर, पूड़ी, सब्जियाँ, कढ़ी और अन्य व्यंजन शामिल होते हैं। इनसे एक तरह का ‘अन्न का पहाड़’ बनाकर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित किया जाता है। इसके बाद इस भोग को प्रसाद के रूप में सबको बांटा जाता है।

गोवर्धन पूजा विधि (Govardhan Puja Vidhi 2025)

गोवर्धन पूजा के लिए सबसे पहले घर के आंगन या मुख्य दरवाजे के पास गोबर से लीप कर गोवर्धन भगवान की आकृति बनाएं। इसके साथ ही गाय और बैल की छोटी-छोटी आकृतियां भी बनाएं।

फिर पूजा में रोली, चावल, बताशे, पान, खीर, जल, दूध, फूल आदि अर्पित करें। उसके बाद दीपक जलाएं। पूजा के दौरान गोवर्धन भगवान की परिक्रमा करें। उसके बाद आरती करें और आखिरी में भोग लगाकर प्रसाद को सभी में बांटें।

गोवर्धन पूजा की सामग्री (Govardhan Puja Samagri 2025)

  • रोली
  • अक्षत
  • चावल
  • बताशा
  • नैवेद्य
  • मिठाई
  • गंगाजल
  • पान
  • फूल
  • खीर
  • सरसों के तेल का दीपक
  • गाय का गोबर
  • गोवर्धन पर्वत की फोटो
  • दही
  • शहद
  • धूप-दीप
  • कलश
  • केसर
  • फूल की माला
  • कृष्ण जी की प्रतिमा या तस्वीर
  • गोवर्धन पूजा की कथा की किताब

गोवर्धन पूजा मंत्र (Govardhan Puja Mantra 2025)

ओं नमो भगवते वासुदेवाय। गोवर्धनाय नमः।
ॐ श्री गोवर्धनाय नमः।
पातालं गच्छ गोवर्धन पर्वतं, तत्र कृता धर्मार्जितानि पुण्यानि।

गोवर्धन पूजा की आरती (Govardhan Puja Aarti Lyrics 2025)

श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ ।
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ ।
तोपे* पान चढ़े, तोपे फूल चढ़े,
तोपे चढ़े दूध की धार ।
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ ।
तेरे गले में कंठा साज रेहेओ,
ठोड़ी पे हीरा लाल ।
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ ।
तेरे कानन कुंडल चमक रहेओ,
तेरी झांकी बनी विशाल ।
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ ।
तेरी सात कोस की परिकम्मा,
चकलेश्वर है विश्राम ।
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज,
तेरे माथे मुकुट विराज रहेओ ।
गिरिराज धारण प्रभु तेरी शरण ।

गोवर्धन पूजा श्लोक (Govardhan Puja Shlok)

गोवर्धन पूजा श्लोकगोवर्द्धनधराधार गोकुलत्राणकारक। विष्णुबाहुकृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रदो भव॥ या लक्ष्मीर्लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता। घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु॥ अग्रतः सन्तु मे गावो गावो मे सन्तु पृष्ठतः। गावो मे हृदये सन्तु गवां मध्ये वसाम्यहम् ॥ अर्थात- पृथ्वी को धारण करने वाले गोवर्धन आप गोकुल की रक्षा करने वाले हैं। भगवान विष्णु ने अपनी भुजाओं से आपको ऊंचा उठाया था। आप मुझे कोटी गोदान देने वाले हो लोकपालों की जो लक्ष्मी यहां धेनुरूप से विराज रही है और यज्ञ के लिए घृत का भार वहन करती है, वह मेरे पापों को दूर करें. गायें मेरे आगे हों, गायें मेरे पीछे हों, गायें मेरे हृदय में हों और मैं सदा गायों के मध्य में निवास करूं।’

गोवर्धन पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा (Govardhan Puja Vrat Katha)

धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार देव राज इंद्र को अपनी शक्तियों का घमंड हो गया था। इंद्र के इसी घमंड को दूर करने के लिए भगवान कृष्ण ने लीला रची। एक बार गोकुल में सभी लोग तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और हर्षोल्लास के साथ नृत्य-संगीत कर रहे थे।

यह देखकर भगवान कृष्ण ने अपनी मां यशोदा जी से पूछा कि आप लोग किस उत्सव की तैयारी कर रहे हैं? भगवान कृष्ण के सवाल पर मां यशोदा ने उन्हें बताया हम देव राज इंद्र की पूजा कर रहे हैं। तब भगवान कृष्ण ने उनसे पूछा कि, हम उनकी पूजा क्यों करते हैं?

यशोदा मैया ने उन्हें बताया कि, भगवान इंद्र देव की कृपा हो तो अच्छी बारिश होती है जिससे हमारे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारे पशुओं को चारा मिलता है। माता की बात सुनकर भगवान कृष्ण ने कहा कि, अगर हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाय तो वहीं चारा चरती हैं और वहां लगे पेड़-पौधों की वजह से ही बारिश होती है।

भगवान कृष्ण की बात मानकर गोकुल वासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे यह सब देखकर इंद्र देव क्रोधित हो गए और उन्होंने इसे अपना अपमान समझा और ब्रज के लोगों से बदला लेने के लिए मूसलाधार बारिश शुरू कर दी।

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बारिश इतनी विनाशकारी थी कि गोकुल वासी घबरा गए। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठाया और सभी लोग इसके नीचे आकर खड़े हो गए।

भगवान इंद्र ने 7 दिनों तक लगातार बारिश की और 7 दिनों तक भगवान कृष्ण ने इस पर्वत को उठाए रखा। भगवान कृष्ण ने एक भी गोकुल वासी और जानवरों को नुकसान नहीं पहुंचने दिया, ना ही बारिश में भीगने दिया।

तब भगवान इंद्र को अहसास हुआ कि उनसे मुकाबला कोई साधारण मनुष्य तो नहीं कर सकता है। जब उन्हें यह बात पता चली कि मुकाबला करने वाले स्वयं भगवान श्री कृष्ण हैं तो उन्होंने अपनी गलती के लिए क्षमा याचना मांगी और मुरलीधर की पूजा करके उन्हें स्वयं भोग लगाया और माना जाता है तब से ही गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई।

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