गणेश चतुर्थी हर वर्ष पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास और भक्ति के साथ मनाई जाती है। यह पर्व भगवान गणेश की आराधना का प्रतीक है, जो विघ्नहर्ता और सुख-समृद्धि के देवता माने जाते हैं। गणेश चतुर्थी के दिन से लेकर उनके विसर्जन तक के उत्सव में कई धार्मिक रीति-रिवाज और पूजा विधियाँ शामिल होती हैं। 2025 में गणेश चतुर्थी 27 अगस्त, बुधवार को पड़ रही है, और मध्याह्नकालीन गणेश पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11:05 बजे से दोपहर 1:40 बजे तक है।
गणेश स्थापना से पहले पूजा स्थल की तैयारी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। पूजा क्षेत्र को साफ-सुथरा कर फूलों, केले और आम के पत्तों से सजाया जाता है। गंगा जल का छिड़काव कर क्षेत्र को पवित्र किया जाता है। इसके बाद भगवान गणेश की प्रतिमा को साफ और ऊँचे स्थान पर स्थापित किया जाता है। प्रतिमा को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखना शुभ माना जाता है। पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे ताजे फूल, फलों, मिठाइयों और धूपबत्ती आदि पहले से तैयार रखनी चाहिए।
गणेश चतुर्थी पूजा में 16 विशेष चरण होते हैं, जिन्हें शोडशोपचार पूजा कहा जाता है। प्रत्येक चरण का धार्मिक महत्व है और इसे पुराणिक मंत्रों के साथ किया जाता है। पूजा के समय की दृष्टि से मध्याह्नकाल को सर्वोत्तम माना जाता है, लेकिन प्रातःकाल और सायंकाल में भी यह पूजा संपन्न की जा सकती है।
गणेश पूजा के 16 चरण और उनका महत्व:
- अवहन (Avahana): यह पहला चरण है, जिसमें भगवान गणेश को आमंत्रित किया जाता है। यदि प्रतिमा पहले से घर पर स्थापित है, तो यह चरण छोड़ दिया जाता है।
- आसन (Asana): इस चरण में भगवान गणेश के लिए विशेष स्थान या आसन प्रदान किया जाता है।
- पाद्य (Padya): भगवान गणेश के चरणों को जल से धोने का अनुष्ठान।
- अर्घ्य (Arghya): हाथों में जल अर्पित कर भगवान की सेवा की जाती है।
- अचमन (Achamana): भगवान गणेश को जल पिलाया जाता है।
- स्नान (Snana): प्रतिमा को गंगाजल, दूध या पंचामृत से स्नान कराया जाता है।
- वस्त्र (Vastra): नए वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। हिन्दू परंपरा में काले और सफेद रंग से परहेज़ किया जाता है।
- यज्ञोपवित (Yajnopavita): पवित्र सूत्र अर्पित कर धार्मिक शुद्धता सुनिश्चित की जाती है।
- गंध (Gandha): चंदन या सुगंधित पदार्थ से भगवान का श्रृंगार किया जाता है।
- पुष्प (Pushpa): ताजे फूल अर्पित किए जाते हैं।
- धूप (Dhupa): धूपबत्ती जलाकर वातावरण को पवित्र किया जाता है।
- दीप (Dipa): दीपक जलाकर प्रकाश अर्पित किया जाता है।
- नैवेद्य (Naivedya): प्रसाद स्वरूप भोजन अर्पित किया जाता है।
- ताम्बूल (Tambula): सुपारी और पान के पत्ते अर्पित किए जाते हैं।
- प्रदक्षिणा (Pradakshina): भगवान की प्रतिमा के चारों ओर परिक्रमा की जाती है।
- नमस्कार (Namaskara): अंत में भगवान गणेश को शीष नवाकर सम्मान अर्पित किया जाता है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि यदि प्रतिमा पहले से घर में स्थापित है और दैनिक पूजा की जाती है, तो अवहन और प्रतिष्ठापन चरण आवश्यक नहीं हैं। प्रतिमाओं का निर्माण मिट्टी या धातु से किया जाता है। पहले से स्थापित प्रतिमा की पूजा के अंत में उत्थापन किया जाता है, विसर्जन नहीं।
गणेश चतुर्थी का पर्व केवल पूजा तक सीमित नहीं है। यह सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है। लोगों के घरों में रंग-बिरंगी सजावट, लोकगीत, भजन और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। बच्चों और बुजुर्गों में इस पर्व को लेकर विशेष उत्साह देखा जाता है।
पूजा के दौरान मंत्रों का उच्चारण, शास्त्रों का पठन और परिवार के सदस्यों की भागीदारी पर्व की भव्यता को और बढ़ाती है। प्रत्येक चरण का सही तरीके से पालन करने से न केवल धार्मिक लाभ होता है, बल्कि मानसिक शांति और सामूहिक एकता भी बढ़ती है।
अंततः, गणेश चतुर्थी का महत्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक है। यह पर्व व्यक्ति और समाज दोनों के जीवन में सुख, समृद्धि और समन्वय का संदेश देता है। 2025 की गणेश चतुर्थी पर मध्याह्नकालीन शुभ मुहूर्त में शोडशोपचार पूजा करने से अत्यधिक फल की प्राप्ति मानी जाती है।
इस प्रकार, गणेश चतुर्थी 2025 न केवल भगवान गणेश की आराधना का पर्व है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का जीवंत उत्सव भी है, जिसमें प्रत्येक चरण और अनुष्ठान विशेष महत्व रखते हैं।