Lok Sabha News, लोकसभा का बुधवार का सत्र बेहद गरमागरम होने वाला है। केंद्र सरकार आज तीन अहम और विवादित विधेयक पेश करने जा रही है, जिनमें सबसे चर्चित वह विधेयक है जिसके तहत यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई भी मंत्री गंभीर अपराधों में गिरफ्तार होकर लगातार 30 दिनों तक जेल में रहता है तो उसे स्वतः ही पद से हटा दिया जाएगा।
विपक्ष का अल्टीमेटम
इस प्रस्तावित विधेयक को लेकर विपक्ष ने सरकार को सीधी चेतावनी दी है। एक प्रमुख विपक्षी सांसद ने बुधवार सुबह सत्र शुरू होने से पहले कहा – “हम इस बिल को पेश भी नहीं होने देंगे। जैसे ही गृह मंत्री अमित शाह इसे सदन में रखेंगे, हम टेबल तोड़ देंगे और बिल को फाड़ देंगे।”
यह बयान लोकसभा में संभावित हंगामे की झलक देता है।
कौन-कौन से विधेयक होंगे पेश
गृह मंत्री अमित शाह आज सदन में तीन विधेयक पेश करेंगे—
- केंद्र शासित प्रदेश सरकार (संशोधन) विधेयक 2025
- संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025
- जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक 2025
इन विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने का प्रस्ताव भी रखा जाएगा।
विवाद की वजह क्या है?
सबसे बड़ा विवाद उस प्रावधान को लेकर है जिसमें कहा गया है कि यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री पांच वर्ष या उससे अधिक की सजा वाले अपराध में गिरफ्तार होकर लगातार 30 दिन जेल में रहता है, तो 31वें दिन उसे अपने पद से हटा दिया जाएगा।
सरकार का दावा है कि यह कदम भ्रष्टाचार पर रोक लगाने और राजनीति को अपराधमुक्त करने के लिए है। लेकिन विपक्ष इसे साजिश करार दे रहा है।
विपक्ष का आरोप
विपक्षी दलों का कहना है कि केंद्र सरकार इस कानून का इस्तेमाल गैर-भाजपा शासित राज्यों की सरकारों को अस्थिर करने के लिए करेगी। उनका आरोप है कि केंद्र की जांच एजेंसियां विपक्षी नेताओं को ‘मनमाने तरीके’ से गिरफ्तार कर सकती हैं और 30 दिन पूरे होने पर उन्हें स्वतः पद से हटाया जा सकेगा।
कांग्रेस के एक सांसद ने कहा –
“यह बिल लोकतंत्र पर सीधा हमला है। सरकार चाहती है कि विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करके सत्ता से बाहर किया जाए। हम इसे किसी भी हालत में पास नहीं होने देंगे।”
पृष्ठभूमि: किन घटनाओं से प्रेरित है यह प्रस्ताव?
इस प्रावधान की पृष्ठभूमि हाल के वर्षों की उन घटनाओं से जुड़ी मानी जा रही है जब कई नेता जेल में रहते हुए भी मंत्री पद पर बने रहे।
- दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के मामलों में जेल में रहने के बावजूद मुख्यमंत्री बने रहे।
- तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी भी गिरफ्तारी के बाद लंबे समय तक पद पर बने रहे।
इन घटनाओं ने सरकार पर दबाव बनाया कि ऐसे हालात में स्पष्ट कानूनी प्रावधान होना चाहिए।
सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार का कहना है कि यह विधेयक राजनीतिक दलों से परे है और पूरी तरह पारदर्शिता व लोकतंत्र की शुचिता बनाए रखने के लिए है।
गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार –
“अगर कोई मंत्री गंभीर आपराधिक मामले में जेल में है तो वह कैसे शासन चला सकता है? यह विधेयक व्यवस्था को साफ और जवाबदेह बनाएगा।”
विपक्ष का पलटवार
विपक्ष इसे लोकतंत्र की हत्या बता रहा है।
- तृणमूल कांग्रेस ने आरोप लगाया कि यह कानून विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने का नया हथियार है।
- कांग्रेस ने कहा कि सरकार को पहले यह साबित करना चाहिए कि एजेंसियां निष्पक्ष हैं।
- राजद और सपा ने कहा कि मोदी सरकार विपक्ष को कुचलने के लिए नए-नए कानून बना रही है।
संसद में क्या होगा आज?
आज का सत्र बेहद तूफानी होने के आसार हैं। विपक्षी दलों ने पहले ही तय कर लिया है कि जैसे ही बिल पेश किया जाएगा, वे नारेबाजी और प्रदर्शन करेंगे। लोकसभा सचिवालय ने अतिरिक्त सुरक्षा इंतजाम किए हैं, लेकिन इसके बावजूद भारी हंगामा होने की संभावना है।
संवैधानिक पेच
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह प्रावधान कई संवैधानिक सवाल भी खड़े करता है।
- क्या गिरफ्तारी मात्र के आधार पर किसी निर्वाचित प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को हटाना न्यायसंगत होगा?
- यदि बाद में अदालत उस गिरफ्तारी को अवैध ठहराए तो क्या उस पद को बहाल किया जाएगा?
- यह भी सवाल उठता है कि क्या राष्ट्रपति की सिफारिश केवल प्रधानमंत्री की सलाह पर आधारित होगी या संसद की स्वीकृति भी आवश्यक होगी?
जनमत और सियासी असर
सड़क पर जनता की राय बंटी हुई है। कुछ लोग मानते हैं कि नेताओं पर सख्त कानून जरूरी है, ताकि राजनीति अपराध मुक्त हो। लेकिन बहुत से नागरिक इसे विपक्षी राज्यों को गिराने का हथियार मान रहे हैं।
बिहार के एक छात्र ने कहा – “अगर कानून सही मंशा से लागू हो तो यह भ्रष्टाचार खत्म करेगा, लेकिन अगर एजेंसियां पक्षपाती हैं तो यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक होगा।”
लोकसभा का आज का सत्र देश की राजनीति में एक नया मोड़ साबित हो सकता है। यदि यह विधेयक पास होता है तो यह भारतीय लोकतंत्र के ढांचे को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा। लेकिन विपक्ष के सख्त रुख को देखते हुए यह साफ है कि इसे लेकर संसद से सड़क तक बड़ा संघर्ष होना तय है।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार विपक्ष की आपत्तियों को दरकिनार करके यह कानून पास कराती है या फिर किसी समझौते का रास्ता अपनाया जाता है।