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संविधान संशोधन विधेयक 130: भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार या राजनीतिक चाल?

पीएम और सीएम तक को जेल में 30 दिन रहने पर पद से हटाने का प्रावधान

Indian Parliament session on 130th Constitutional Amendment Bill

भारत के संसदीय इतिहास में एक बार फिर बड़ा बदलाव चर्चा में है। केंद्र सरकार ने लोकसभा में 130वां संविधान संशोधन विधेयक पेश करने की तैयारी की है। यह विधेयक सीधे तौर पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों के पद से जुड़े नियमों को प्रभावित करेगा। अगर यह कानून पास हो गया, तो भ्रष्टाचार या गंभीर अपराध के मामलों में जेल की सजा भुगत रहे नेताओं को अपने पद से हाथ धोना पड़ सकता है।

क्या कहता है 130वां संविधान संशोधन विधेयक?

प्रस्तावित संशोधन में साफ कहा गया है कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई मंत्री किसी गंभीर अपराध के आरोप में लगातार 30 दिन तक जेल में रहता है, तो 31वें दिन से उसका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा। यानी या तो वह खुद इस्तीफा देगा या कानूनन उसका पद खत्म माना जाएगा।

यह संशोधन संविधान के दो प्रमुख अनुच्छेदों से जुड़ा है – अनुच्छेद 75 (केंद्र सरकार) और अनुच्छेद 164 (राज्य सरकार)। इसके तहत पीएम और केंद्रीय मंत्रियों पर वही नियम लागू होगा जो राज्यों के मुख्यमंत्री और मंत्रियों पर लागू होगा।

प्रधानमंत्री और मंत्रियों पर असर

संविधान के अनुच्छेद 75 में पहले से ही मंत्रियों की नियुक्ति और पद पर बने रहने का प्रावधान है। लेकिन अब प्रस्तावित संशोधन इसे और सख्त बनाता है। अगर कोई केंद्रीय मंत्री या प्रधानमंत्री लगातार 30 दिन जेल में है और उस अपराध की सजा पांच साल या उससे ज्यादा की हो सकती है, तो राष्ट्रपति उसे पद से हटा देंगे। अगर प्रधानमंत्री स्वयं जेल में हैं और इस्तीफा नहीं देते, तो उनका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा।

मुख्यमंत्री और राज्य मंत्रियों के लिए नियम

संविधान का अनुच्छेद 164 राज्यों की कार्यपालिका से जुड़ा है। नए संशोधन के मुताबिक, अगर कोई राज्य का मंत्री 30 दिन तक जेल में है, तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर उसे पद से हटा देंगे। अगर सलाह नहीं दी जाती, तो भी 31वें दिन से उसका पद समाप्त हो जाएगा। इसी तरह अगर कोई मुख्यमंत्री खुद 30 दिन जेल में रहता है, तो उसे इस्तीफा देना होगा, अन्यथा उसका पद भी स्वतः समाप्त हो जाएगा।

किन मामलों में लागू होगा यह प्रावधान?

यह संशोधन केवल उन्हीं अपराधों पर लागू होगा जिनकी सजा पांच साल या उससे अधिक है। भ्रष्टाचार, मनी लॉन्ड्रिंग और गंभीर आपराधिक मामलों में फंसे नेताओं पर यह प्रावधान सीधा असर डालेगा। इससे पहले तक कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जब मंत्री या सीएम गंभीर मामलों में आरोपी होने के बावजूद लंबे समय तक पद पर बने रहे।

दोबारा नियुक्ति का विकल्प

इस विधेयक में एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह भी है कि जेल से रिहा होने के बाद वही व्यक्ति दोबारा प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री नियुक्त किया जा सकता है। यानी हटाए जाने का मतलब यह नहीं होगा कि उस व्यक्ति का राजनीतिक करियर समाप्त हो गया। रिहाई के बाद वह फिर से पद की शपथ ले सकता है, बशर्ते उसकी पार्टी या राष्ट्रपति/राज्यपाल चाहें।

दिल्ली और केंद्रशासित प्रदेशों पर भी लागू

संविधान संशोधन विधेयक 130 केवल राज्यों और केंद्र सरकार तक सीमित नहीं है। यह दिल्ली सरकार और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों पर भी लागू होगा। अनुच्छेद 239AA के तहत, अगर दिल्ली का मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन तक जेल में है, तो उसे भी पद से हटाया जाएगा। यही नियम जम्मू-कश्मीर और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों में भी लागू होंगे।

राजनीतिक हलकों में गर्माहट

इस विधेयक ने संसद के गलियारों में हलचल मचा दी है। विपक्ष का कहना है कि सरकार इस कानून का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए कर सकती है। उनका तर्क है कि आरोप लगने और जेल भेजे जाने के बीच कई बार न्यायिक प्रक्रिया पूरी तरह निष्पक्ष नहीं होती। ऐसे में 30 दिन का प्रावधान किसी भी नेता के लिए भारी नुकसान साबित हो सकता है।

वहीं, सरकार का पक्ष है कि यह संशोधन राजनीति को शुद्ध करने और भ्रष्टाचार को खत्म करने की दिशा में बड़ा कदम है। अगर जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही गंभीर अपराधों में जेल में होंगे, तो लोकतंत्र की साख पर सवाल उठेगा।

इतिहास में ऐसे कई मामले

भारतीय राजनीति में कई ऐसे उदाहरण हैं जब मंत्री या मुख्यमंत्री गंभीर आरोपों में जेल गए, लेकिन फिर भी उन्होंने पद नहीं छोड़ा। उदाहरण के लिए, लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में दोषी ठहराए जाने के बावजूद लंबे समय तक राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे। कई अन्य राज्यों में भी ऐसे मामले हुए हैं।

संवैधानिक और कानूनी बहस

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह विधेयक एक तरह से राजनीति और अपराध के गठजोड़ को तोड़ने की कोशिश है। हालांकि, इसे लागू करने में कई चुनौतियां भी होंगी। सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि 30 दिन का समय न्यायिक प्रक्रिया में बहुत कम होता है। कई बार निर्दोष व्यक्ति भी लंबे समय तक हिरासत में रहता है। ऐसे में उसका पद स्वतः समाप्त होना न्याय के सिद्धांत के खिलाफ माना जा सकता है।

क्या होगा आगे?

लोकसभा में विधेयक पेश होने के बाद इस पर व्यापक बहस की संभावना है। अगर दोनों सदनों से यह बिल पास हो गया और राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई, तो यह संविधान का हिस्सा बन जाएगा। यह न केवल वर्तमान नेताओं बल्कि आने वाली पीढ़ी के नेताओं के लिए भी बड़ा संदेश होगा कि भ्रष्टाचार और अपराध के साथ अब राजनीति संभव नहीं है।