शाह की यात्रा के दौरान उठे प्रोटोकॉल सवाल और विपक्ष की नाराजगी
जम्मू-कश्मीर की सियासत एक बार फिर गर्मा गई है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हालिया जम्मू दौरे में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की मौजूदगी को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। शाह ने इस यात्रा के दौरान बाढ़ प्रभावित इलाकों का निरीक्षण किया और कई अहम बैठकों की अध्यक्षता की। हालांकि साझा की गई तस्वीरों में अब्दुल्ला पिछली पंक्ति में खड़े नजर आए, जबकि मंच पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और भाजपा नेताओं की प्रमुख उपस्थिति रही। विपक्षी दलों ने इसे चुने हुए मुख्यमंत्री के अपमान के रूप में देखा और केंद्र सरकार पर तटस्थता से समझौता करने का आरोप लगाया। पीडीपी नेता वहीद पारा ने कहा कि यह केवल एक व्यक्ति का नहीं बल्कि संस्था और जनता के जनादेश का अपमान है। वहीं इल्तिजा मुफ्ती ने इसे “दुर्भाग्यपूर्ण” बताते हुए कहा कि राजनीति से अलग हटकर भी मुख्यमंत्री का प्रतिनिधित्व पूरे प्रदेश के लिए होता है और उनके प्रोटोकॉल को नजरअंदाज करना लोकतांत्रिक गरिमा के खिलाफ है। आम आदमी पार्टी के विधायक मेहराज मलिक ने भी अब्दुल्ला को आत्मसम्मान दिखाने की नसीहत देते हुए कहा कि भाजपा के पीछे खड़े रहने के बजाय उन्हें अपने लोगों के लिए स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए।
सोशल मीडिया पर बहस और विपक्षी आरोपों का नेशनल कॉन्फ्रेंस ने दिया जवाब
इस विवाद को सोशल मीडिया पर और हवा तब मिली जब श्रीनगर के पूर्व मेयर जुनैद मट्टू ने एक तस्वीर साझा कर व्यंग्यात्मक टिप्पणी की कि “क्या आप हमारे मुख्यमंत्री को 15 सेकंड से कम में पहचान सकते हैं।” इस पोस्ट के बाद पीडीपी और आप समेत विपक्षी दलों ने अब्दुल्ला सरकार पर सवाल उठाए। हालांकि, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि तस्वीरें केवल एक पल को दर्शाती हैं और हकीकत इससे अलग है। एनसी नेताओं के अनुसार मुख्यमंत्री को गृह मंत्री के साथ बैठक में उचित प्रोटोकॉल दिया गया था। उन्होंने विपक्ष पर खासतौर से पीडीपी पर भ्रामक प्रचार फैलाने का आरोप लगाया। पार्टी का कहना है कि इस तरह की बातें लोगों को गुमराह करने और प्रदेश की राजनीति को अस्थिर करने की कोशिश हैं। इसके बावजूद यह स्पष्ट है कि उमर अब्दुल्ला की छवि पर सवाल उठे हैं और जनता के बीच यह चर्चा गहराई से हो रही है कि क्या प्रदेश के निर्वाचित प्रतिनिधि को हाशिये पर धकेला जा रहा है।
दोहरी शासन व्यवस्था और भाजपा-एलजी की भूमिका पर उठे सवाल
अमित शाह की यात्रा के दौरान उठे इस विवाद ने जम्मू-कश्मीर की दोहरी शासन व्यवस्था की खामियों को एक बार फिर उजागर कर दिया है। उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में कहा था कि प्रदेश में लागू वर्तमान शासन मॉडल सफलता नहीं बल्कि असफलता की ओर ले जा रहा है। उनके कई निर्णय लंबे समय से राजभवन में अटके पड़े हैं। विपक्ष का आरोप है कि उपराज्यपाल मनोज सिन्हा भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं से शाह की अध्यक्षता वाली बैठक में घिरे नजर आए, जिससे संवैधानिक पद की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह खड़े होते हैं। पीडीपी का कहना है कि उपराज्यपाल को इस बैठक से दूरी बनानी चाहिए थी ताकि उनकी विश्वसनीयता बनी रहे। नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रवक्ता इमरान नबी ने भी सवाल उठाया कि अगर यह पक्षपात नहीं है तो और क्या है। कुल मिलाकर, शाह की इस यात्रा ने न केवल आपदा प्रबंधन के सवालों को जन्म दिया बल्कि प्रदेश की सियासी खींचतान को और गहरा कर दिया। अब देखना यह होगा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस इस विवाद से अपनी छवि को बचा पाती है या विपक्ष इसे जनता के बीच और बड़ा मुद्दा बनाने में सफल रहता है।