पाकिस्तान इस समय भीषण बाढ़ और लगातार हो रही भारी बारिश की मार झेल रहा है। हालात इतने भयावह हैं कि मरने वालों की संख्या 700 से पार पहुंच चुकी है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, केवल पिछले 24 घंटों में ही 24 लोगों की जान गई है। लेकिन इस मानवीय त्रासदी के बीच भी पाकिस्तान का एक बड़ा वर्ग और उसकी मीडिया भारत को दोषी ठहराने से पीछे नहीं हट रहा है।
पाकिस्तानी मीडिया ने भारत पर लगाया आरोप
पाकिस्तान के प्रमुख टीवी चैनल समा टीवी ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि पंजाब क्षेत्र में रावी नदी खतरनाक स्तर पर बह रही है और इसका कारण भारत द्वारा पानी छोड़ा जाना है। रिपोर्टर ने कहा कि भारत से पाकिस्तान में प्रवेश करने वाली रावी नदी में इस समय 60 हजार क्यूसेक से अधिक पानी आ रहा है, जिससे बाढ़ का संकट और गहरा गया है।
पाकिस्तान का प्रशासन नदी किनारे बसे गांवों को खाली कराने में जुटा है ताकि लोगों की जान बचाई जा सके। हालांकि, भारत की ओर से इस तरह के आरोपों पर किसी तरह की आधिकारिक टिप्पणी सामने नहीं आई है।
सिंधु जल संधि का संदर्भ
गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में सिंधु जल संधि हुई थी। इस समझौते के तहत ब्यास, रावी और सतलुज नदियों का पानी उपयोग करने का अधिकार भारत को दिया गया, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब का पानी पाकिस्तान को आवंटित किया गया।
हालांकि, हाल के वर्षों में भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए संधि पर पुनर्विचार की बात कही है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने इस समझौते को लेकर सख्त रुख अपनाया। ऐसे में पाकिस्तान की मीडिया और राजनीतिक हलकों द्वारा बार-बार भारत पर बाढ़ की स्थिति के लिए आरोप लगाना नया नहीं है।
बाढ़ की भयावह तस्वीर
एनडीएमए के मुताबिक, मानसून की शुरुआत से अब तक बाढ़ और बारिश से जुड़ी घटनाओं में 706 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। करीब 965 लोग घायल हुए हैं और हजारों घर पूरी तरह या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो चुके हैं।
सबसे ज्यादा तबाही खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में हुई है, जहां अब तक 427 लोगों की मौत दर्ज की गई है। पंजाब प्रांत में 164, सिंध में 29, बलूचिस्तान में 22, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 56 और इस्लामाबाद में 8 लोगों की जान गई है।
खैबर पख्तूनख्वा में हालात सबसे खराब
पाकिस्तान सेना ने सबसे प्रभावित प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में बड़े पैमाने पर राहत और बचाव अभियान शुरू किया है। यहां नौ राहत शिविर स्थापित किए गए हैं, जहां अब तक 6,903 लोगों को सुरक्षित निकाला गया है और चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई गई है। सेना के हेलीकॉप्टर लगातार प्रभावित इलाकों में उड़ान भरकर बचाव कार्य और राहत सामग्री पहुंचा रहे हैं।
सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी ने बताया कि प्रांत में आठ सैन्य इकाइयाँ और बुनेर इलाके में दो अतिरिक्त बटालियन राहत अभियान चला रही हैं।
राहत और बचाव कार्य जारी
संघीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अताउल्लाह तरार ने बताया कि एनडीएमए, सेना और केंद्र व प्रांतीय सरकारें मिलकर राहत कार्यों में जुटी हैं। अब तक लगभग 25,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है।
राहत शिविरों में बाढ़ पीड़ितों को भोजन, दवाइयाँ और अस्थायी आश्रय उपलब्ध कराया जा रहा है। लेकिन लगातार बारिश की वजह से राहत कार्यों में काफी दिक्कतें आ रही हैं।
मौसम विभाग का अलर्ट
पाकिस्तान मौसम विज्ञान विभाग (पीएमडी) ने अगले 24 घंटों के लिए चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि देश के अधिकांश हिस्सों में तेज हवाओं और भारी बारिश की संभावना है। विभाग ने प्रशासन से सतर्क रहने और नदी किनारे रहने वाले लोगों को समय रहते सुरक्षित स्थानों पर ले जाने की अपील की है।
मानव त्रासदी के बीच राजनीतिक बयानबाजी
विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान को इस वक्त अपने नागरिकों की सुरक्षा और पुनर्वास पर ध्यान देना चाहिए। लेकिन यहां की मीडिया और कुछ राजनीतिक दल हर बार की तरह भारत को जिम्मेदार ठहराकर जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं।
दरअसल, पाकिस्तान में हर प्राकृतिक आपदा के समय “भारत ने पानी छोड़ा” वाला नैरेटिव चलाना आम बात है। लेकिन हकीकत यह है कि मानसून के दौरान पाकिस्तान खुद भीषण बारिश का सामना करता है और उसकी अपनी तैयारियां अक्सर नाकाफी साबित होती हैं।
पाकिस्तान इस समय भीषण प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है। बाढ़ और बारिश से सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है, हजारों परिवार बेघर हो गए हैं और राहत कार्य अभी भी जारी है। इन कठिन हालातों में पाकिस्तान को चाहिए कि वह भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाने के बजाय अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत करे और आपदा प्रबंधन तंत्र को प्रभावी बनाए।
भारत-पाकिस्तान संबंधों की जटिलता अपनी जगह है, लेकिन प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने में सहयोग और पारदर्शिता ही दोनों देशों के लिए आगे का रास्ता हो सकता है। बाढ़ की तबाही ने एक बार फिर यह साबित किया है कि जल प्रबंधन और आपसी सहयोग की कमी से मानव जीवन को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।