भारत और चीन के बीच सीमा व्यापार को लेकर मंगलवार को एक बड़ा फैसला लिया गया। दोनों देशों ने लिपुलेख दर्रे सहित तीन अहम मार्गों से व्यापार को फिर से शुरू करने पर सहमति जताई है। लेकिन इस फैसले ने पड़ोसी देश नेपाल को नाराज कर दिया है। नेपाल का दावा है कि लिपुलेख उसका क्षेत्र है और इस मार्ग से भारत-चीन के बीच व्यापार बहाल किया जाना उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है। इस मुद्दे ने एक बार फिर भारत-नेपाल संबंधों में तनाव को जन्म दे दिया है।
भारत-चीन समझौता और नेपाल की आपत्ति
चीनी विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच एक संयुक्त दस्तावेज जारी किया गया। इसमें लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड), शिपकी ला दर्रा (हिमाचल प्रदेश) और नाथू ला दर्रा (सिक्किम) से व्यापार फिर शुरू करने पर सहमति बनी। कोविड-19 और सुरक्षा कारणों से इन मार्गों पर व्यापार लंबे समय से प्रभावित था। लेकिन नेपाल ने इस समझौते पर आपत्ति जताते हुए कहा कि लिपुलेख दर्रा उसका अभिन्न हिस्सा है।
नेपाल सरकार के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि भारत और चीन को इस क्षेत्र में कोई भी गतिविधि नहीं करनी चाहिए। नेपाल ने यह भी दावा किया कि उसके आधिकारिक नक्शे, संविधान और ऐतिहासिक दस्तावेज स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा नेपाल के भूभाग में आते हैं।
भारत का कड़ा रुख
नेपाल की आपत्तियों पर भारत ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि लिपुलेख से भारत-चीन का व्यापार कोई नया समझौता नहीं है बल्कि यह 1954 से चला आ रहा है। कोविड और अन्य कारणों से इसमें रुकावट आई थी, जिसे अब दोबारा शुरू किया जा रहा है। उन्होंने नेपाल के दावों को “न तो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित” और “न ही उचित” बताया।
भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी देश एकतरफा तरीके से अपने क्षेत्रीय दावों का विस्तार नहीं कर सकता। प्रवक्ता ने कहा कि भारत, नेपाल के साथ सीमा विवादों को बातचीत और कूटनीतिक माध्यमों से सुलझाने के लिए हमेशा तैयार है।
नेपाल का रुख और दलीलें
नेपाल लंबे समय से यह दावा करता रहा है कि महाकाली (काली) नदी के पूर्वी हिस्से में स्थित लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख उसका हिस्सा हैं। नेपाल का कहना है कि 1816 की सुगौली संधि के अनुसार काली नदी ही दोनों देशों के बीच की सीमा है। लेकिन विवाद इस बात पर है कि नदी का वास्तविक उद्गम स्थल कहां है।
नेपाल का तर्क है कि नदी का स्रोत लिम्पियाधुरा है और इस आधार पर वह लिपुलेख और आसपास के क्षेत्रों पर दावा करता है। जबकि भारत का कहना है कि नदी का उद्गम लिपुलेख के नीचे बहने वाले झरनों से होता है, इसलिए यह क्षेत्र उत्तराखंड का हिस्सा है।
नेपाल ने हाल के वर्षों में इस दावे को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। 2020 में उसने नया राजनीतिक नक्शा जारी किया, जिसमें इन विवादित क्षेत्रों को शामिल किया गया। 2024 में नेपाल ने अपने 100 रुपये के नए नोट पर भी इन क्षेत्रों को दिखाया, जिससे विवाद और गहराया।
रणनीतिक महत्व क्यों है लिपुलेख दर्रे का?
लिपुलेख दर्रा भारत, नेपाल और चीन के त्रि-जंक्शन पर स्थित है और सामरिक दृष्टि से बेहद अहम है। यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले को तिब्बत से जोड़ता है और कैलाश मानसरोवर यात्रा का प्रमुख मार्ग है।
इतिहास में यह दर्रा व्यापार और तीर्थयात्रा के लिए उपयोग होता रहा है। लेकिन वर्तमान में इसका महत्व और बढ़ गया है क्योंकि यह चीन की सीमा तक जाने वाला एक महत्वपूर्ण मार्ग है। भारत ने 2020 में यहां तक 80 किलोमीटर लंबी सड़क का उद्घाटन किया था, जिसका नेपाल ने कड़ा विरोध किया।
भारत का कहना है कि यह सड़क कैलाश मानसरोवर यात्रियों और स्थानीय व्यापारियों की सुविधा के लिए बनाई गई है। साथ ही यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से भी अहम है क्योंकि यहां से चीन की सीमा तक पहुंचना आसान हो जाता है।
भारत-नेपाल संबंधों पर असर
भारत और नेपाल के बीच सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रिश्ते बेहद गहरे हैं। दोनों देशों के लोग बिना वीजा एक-दूसरे के देश में आ-जा सकते हैं। नेपाल, भारत का महत्वपूर्ण पड़ोसी है और भारत में बड़ी संख्या में नेपाली नागरिक रहते और काम करते हैं।
लेकिन हाल के वर्षों में सीमा विवादों ने दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट पैदा की है। 2015 में जब भारत और चीन ने लिपुलेख मार्ग से व्यापार और यात्रा को लेकर समझौता किया था, तब भी नेपाल ने कड़ी आपत्ति जताई थी। अब 2025 में दोबारा वही स्थिति बन गई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस विवाद को जल्द कूटनीतिक बातचीत के जरिए नहीं सुलझाया गया तो भारत-नेपाल के रिश्तों में और तनाव बढ़ सकता है।
लिपुलेख दर्रा न केवल भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत-नेपाल संबंधों के लिए भी एक संवेदनशील मुद्दा है। भारत का मानना है कि यह क्षेत्र उत्तराखंड का हिस्सा है और यहां सड़क व व्यापारिक गतिविधियां पूरी तरह वैध हैं। वहीं नेपाल इसे अपनी संप्रभुता से जुड़ा मामला मानकर हर बार आपत्ति दर्ज करता है।
भारत-चीन के बीच व्यापार बहाली का फैसला जहां दोनों देशों के लिए आर्थिक दृष्टि से सकारात्मक माना जा रहा है, वहीं नेपाल की कड़ी प्रतिक्रिया इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में यह विवाद और गहराएगा। इसलिए अब जरूरत इस बात की है कि भारत और नेपाल आपसी संवाद और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर इस समस्या का समाधान खोजें। तभी दोनों पड़ोसी देशों के बीच विश्वास और सहयोग की नींव मजबूत हो सकेगी।